Travel Story

My North East Journey | मेरी पूर्वोत्तर यात्रा | #TowardNE

     मैं कभी भी भीड़ का हिस्सा नहीं बनना चाहता, मैं हमेसा उधर जाना चाहता हु जिधर बहुत कम लोग जाते हैं और मैंने पूर्वोत्तर जाने का सोचा, यह बहुत काम लोग जाते हैं तो मने इन जगहों को एक्स्प्लोर करने का सोचा और निकल पड़ा एक अद्भुत घुमकड़ी की तरफ


Day19

आज मैं Mizoram के Bairabi गाँव में हू, ये उस मिज़ो लड़की का घर हैं जो कल मुझे ट्रैन से ले कर आई थी और अपने घर सोने दिया था, आज यहा मैं सभी लोगो से थोड़ा पहले उठ गया था, जब आप किसी के घर होते हो तो अपने आप ही नीद खुल जाती हैं, Nunu (उस लड़की का नाम short में नूई ) और उसकी पूरी फॅमिली अभी सोइ हुई है, मेरी नीद तो खुल गई हैं पर फिर भी मैं बिस्तर में पड़ा रहता हू, थोड़ी देर में नूई की मम्मी जगती हैं और फिर फाइनली मैं जग जाता हु, Nunu की मम्मी मेरी तरफ देख के हल्का मुस्कराती हैं और कुछ बोलती नहीं हैं क्योकि उन्हें हिंदी नहीं आती और मैं भी उनकी तरफ देख के मुस्करा देता हू क्योकि मुझे मिज़ो नहीं आती, मिजोरम में सुबह जल्दी हो जाती हैं, मिजोरम का टाइम दिल्ली के टाइम से 1:30 hr आगे चलता हैं पर वहा कोई अलग टाइम जोन नहीं हैं, फिर थोड़ी देर में Nunu जगती है और फिर Nunu की बहन और उनकी भाभी और सभी मुझे गुड मॉर्निंग कहते हैं मैं भी उन्हें गुड मॉर्निंग कहता हु, और फिर घर से बहार निकल जाता हु टहलने के लिए, नूई के घर के आस पास बहुत सारे पेड लगे हुए हैं और ये जगह बहुत ही हरी हैं, मिजोरम का लगभग 87% एरिया forest हैं जो की इंडिया का highest ratio हैं,
नूई के घर के पीछे Tlawng नदी हैं, मैं नदी की तरफ जाता हु, और नदी का एरिया बहुत ही खूबसूरत होता हैं, नदी के दोनों तरफ खूब सरे पेड़ लगे हैं और दूर तक चाय की खेती हैं, मैं थोड़ी देर वहा घूम कर फिर नूई के घर आ जाता हु, नूई की मम्मी अपनी गाय का दूध दुह रही होती हैं और मैं ब्रश करने लगता हु, थोड़ी देर में नूई की मम्मी चाय बना के लाती हैं और हम सब पीने लगते हैं, और टीवी पे कोई मिज़ो मेटल सांग बज रहा हैं, आज मुझे मिजोरम के लिए इनर लाइन परमिट (ILP) बनवाना हैं और अभी वही सब बाते चल रही हैं, ILP ऑफिस यही पास में ही हैं, नूई के पापा मुझसे कहते हैं की नूई जा कर आपका ilp बनवा लाएगी, नूई के पापा भी बहुत अच्छे हैं, वो थोड़ी-थोड़ी हिंदी बोल लेते हैं, अभी ऑफिस खुलने में वक़्त हैं तो मैं थोड़ी देर और टीवी देखता रहता हु और सभी लोग अपने काम में लग जाते हैं, मैंने सुना था की यहा केबल ऑपरेटर हिंदी चैनल नहीं देते तो ये बात मैने नूई से पूछा और उसने कहा की ऐसी बात नहीं हैं और उसने एक हिंदी न्यूज़ चैनल लगा दिया, मैं थोड़ी देर तक न्यूज़ देखता रहा, न्यूज़ देखे हुए भी बहुत दिन हो गए थे, आज भी न्यूज़ में हर दिन की तरह बकवास न्यूज़ आ रही हैं, 4 लोग बैठ कर लड़ रहे हैं, मैं टीवी बंद कर देता हु और नूई के घर के पीछे का बगीचा घूमने लगता हु, तभी नूई के पापा आवाज देते हैं की खाना बन गया हैं और मैं मन ही मन कहता हु की बड़ा जल्दी खाना बना दिया फिर वो बात मुझे याद आती हैं की यहा सब कुछ 1:30 घंटे पहले होता हैं (टाइम Zone), नूई के पापा सोफे के सामने एक टेबल रख कर मेरा खाना लगा देते हैं, दाल चावल और दो तरह की सब्जी खाना खाने के बाद मैं और नूई निकलते हैं ILP ऑफिस के लिए, नूई मुझे सड़क तक छोड़ती हैं जो घर से 100 मीटर हैं और वहा से मैं नूई के चहेरे भाई की बाइक पर बैठ कर ILP ऑफिस चला जाता हु जो लगभग 1 km हैं, मैं ऑफिस पहुँचता हु तो वहा दो लड़किया होती हैं जो परमिट बनाती हैं पर वहा परमिट बनवाने वाला कोई नहीं होता, शायद सभी रेलवे स्टेशन पर ही बनवा लेते हैं, मैं उन्हें अपना वोटर Id और 120₹ फीस देता हु और 10 मिनट में मेरा परमिट बन जाता हैं, अब हम घर की तरफ चल देते हैं क्योकि थोड़ी ही देर में यहा से सूमो जाने वाली हैं, मैं अपना बैग पैक कर के चलने की तैयारी करता हु, नूई की सारी फॅमिली घर के बहार तक आती हैं मुझे छोड़ने के लिए, नई की मम्मी मुझसे कहती हैं की जब Aizawl से लौटना तो हमसे मिल कर जाना और मैं कहता हु "जरूर मिल के जाऊंगा"
   मैं नूई के भाई की गाड़ी पर बैठ कर सूमो स्टैंड की तरफ चल देता हु, यहा 30 मिनट बाद एक सूमो हैं जो अगली बड़ी जगह Kolasib तक छोड़ेगी और इसके बाद वहा दूसरी सूमो मिल जाती हैं और उसके आगे मैं लिफ्ट भी ले सकता हु, सूमो स्टैंड घर से थोड़ी ही दूर था, वहा मुझे नूई के भाई ने छोड़ा और मुझे अपना मोबाइल नंबर दिया और कहा की कोई प्रॉब्लम हो तो फ़ोन करना, थोड़ी देर में सूमो आती हैं और मैं सूमो में बैठ कर आइज़ोल की तरफ निकल पड़ता हु, Kolasid जो यहा से लगभग 40km हैं वहा तक का रास्ता कही खराब हैं तो कही ठीक और कही तो बहुत ही खराब पर इसके ठीक उलट चारो तरफ हरियाली हैं, दूर तक दिखते हरे पहाड़ और अगल सी शांति और सुकून हैं, रोड के अलावा वहा सब कुछ हरा हैं, रास्ते में बम्बू के घर बने हुए हैं और पहाड़ो पे sabjiya और फल लगे हुए हैं, लगभग 2 घंटे में मैं Kolasib पहुंच जाता हू, ये जगह थोड़ी समतल हैं शायद किसी पहाड़ की छोटी को काट कर बनाया गया हैं, मैं चौराहे से थोड़ा आगे बढ़ कर लिफ्ट के लिए कोशिश करता हू, पर मुझे यहा वक़्त ज्यादा कीमती लगता हैं क्योकि अब यहा से आखरी सूमो जाने वाली होती हैं और इसके बाद कोई कोई गाड़ी नहीं होगी और शाम से पहले मैं Aizawl पहुंचना चाहता हू, मैं तुरंत सूमो काउंटर पर जाता हू और टिकट पता करता हू, वहा सिर्फ एक टिकट बचा होता हैं सूमो के पीछे की सीट का, मैं तुरंत 200₹ दे कर टिकट ले लेता हू और सूमो Aizowl की तरफ चल देती हैं, अब हम पहाड़ियों के ऊपर होते हैं, मिजोरम की ये पहाड़िया durtlang hills के नाम से प्रसिद्ध हैं, दोनों तरफ दूर तक फैले हरे जांगले और पहाड़ दिखाई देते हैं साथ ही पहाड़ो पर बदलो का झुण्ड इसे और भी खूबसूरत बना देता हैं, लगभग 2 घंटे चलने के बाद एक ढाबा आता हैं, जहा सूमो वाला रुकता हैं और वहा सब पूड़ी और चाय खाते हैं और फिर Aizawl की तरफ निकल पड़ते हैं और हम शाम ढलते-ढलते Aizawl पहुंच जाते हैं,

अब मुझे यहा एक सस्ते होटल की तलाश हैं पर मैंने सूमो में ही सस्ते होटल के बारे में पूछ लिया था और उन्होंने मुझे उस चौराहे पर ही उतरने को कहा जो मार्केट के बिच था और वहा सभी budget hotel थे, मैं एक होटल में जाता हू और वहा मुझे 300₹ में एक होटल मिल जाता हैं, मैं वहा अपना सामान रखता हू और निकला जाता हू मिजोरम की गलियों को देखने, यहा हर जगह लड़किया काम कर रही हैं, बाजार में लड़के बहुत कम हैं, यहा साफ सफाई वाक़ई में बहुत अच्छी हैं और सभी Traffic rules को follow कर रहे हैं, यहा लोग हिंदी कम ही समझते हैं पर इंग्लिश बहुत अच्छी बोल लेते हैं, यहा बहुत सारे असम के लोग काम करते हैं और वो हिंदी बोल लेते हैं, ऐसी ही मैं एक मोमो वाले के पास पहुँचता हू जो सड़क किनारे मोमो बेच रहा होता हैं, यहा उसने सफाई का काफी ख्याल रखा है, एक तरफ डस्टबिन रखी हैं Momos बर्तन में हैं और बाकि की चीजे transparent बॉक्स में हैं, मैं उससे रेट पूछता हू तो वो 20 के 2 Momos बताता हू, ये लड़का असम से होता हैं और यहा मोमोस बेचता हैं, और हिंदी भी बोल लेता हैं, मैंने उससे कहा की अच्छा 2 मोमोस दे दो, उसके मोमोस बड़े-बड़े होते हैं 10 का एक के हिसाब से ठीक थे, फिर भी मैं कहता हू की हमारे यहा 10 के 2 मिल जाते हैं और मैं खाने लगता हू,खाने के बाद मैं उससे पूछता हू की कितने रूपये हुए तो वो कहता हैं की 10 दे दो फिर मैं उससे कहता हू की 2 और दे दो, और मैं उससे बातें करने लगता हू वो मुझे बताता हैं की बहुत कम लोग ही मैन लैंड इंडिया से आते हैं, आपको देख कर अच्छा लगा, मैंने उसका सुक्रिया अदा किया और मैं उसे उसके 20₹ दे कर होटल की तरह चल देता हू


YouTube Video https://youtu.be/RsGmZQxPZ3Y 

Day18

आज जब सुबह मेरी नीद खुली तो मैने पाया की मैं एक ट्रक में हू, एक मिनट तो मेरे समझ ही नहीं आया की मैं यह पंहुचा कैसे, फिर धीरे-धीरे बिता कल याद आया और फिर कल रात जब मुझे ट्रक वाले ने रात में मुझे अपने ट्रक में सोने दिया था
मैं ट्रक का दरवाजा खोलता हू तो सामने पहाड़ होते हैं और ये जगह भी शायद किसी पहाड़ की चोटी थी,और ऐसे कई पहाड़ मुझे सामने नजर आ रहे थे,इन सारे पहाड़ो की चोटी तो दिख रही थी मगर जमीं नजर नहीं आ रही थी क्योकि पहाड़ो की चोटी से जरा निचे बदलो का झुण्ड था और मैं बदलो के ऊपर, ये नजारा वाकई में बहुत खूबसूरत था,मैं ट्रक से निचे उतरता हू और वहा पहले से 3,4 ट्रक खड़े होते हैं, अब मैं वहा आस पास थोड़ा घूमने लगता हू, वहा से निचे की तरफ एक कुआँ हैं जहा ऊपर से निचे की तरफ जाना भी मुश्किल हैं वहा से ट्रक वाले बाल्टी में पानी ला रहे थे, मैने वहा पानी से मुँह धोया और और रेलवे स्टेशन की तरफ बढ़ चला
पहले मुझे यहा से निकल कर मैन रोड पर जाना था जिसका मुझे रास्ता भी नहीं पता था और ऐसी जगहों पे मैप भी सही से काम नहीं करता, मैंने रास्ते में एक आदमी से मैन रोड का रास्ता पूछा और फिर आगे बढ़ चला और मैं जल्द ही मैन रोड पर आ गया, ये पहाड़ी इलाका हैं तो रोड भी वैसे ही थी एक तरफ निचे को जाती थी और दूसरी तरफ ऊपर की ओर, अब मुझे इंतजार था किसी की गाड़ी का ताकि उसकी गाड़ी पर बैठ कर मैं स्टेशन जा सकू, थोड़ी देर इंतजार के बाद भी कोई गाड़ी नहीं आई फिर मुझे एक ऑटो आता हुआ दिखा मैंने उसे रुकने का इशारा किया ओर वो रुक गया, मैंने उससे रेलवे स्टेशन तक जाने का पूछा तो उसने बताया की वो टाउन तक जायेगा और रेलवे स्टेशन जाने के लिए ऑटो वही से मिलेगा फिर मैंने पूछा कितना लोगे तो उसने कहा की 10₹ और मैंने कहा ठीक हैं और मैंने उसकी ऑटो में अपना बैग डाला और बैठ गया, और मैं थोड़ी ही देर में हॉफलोंग सिटी के ऑटो स्टैंड पर पहुंच गए जो उस जगह से लगभग 1km था और रेलवे स्टेशन जाने वाले ऑटो वही खड़े थे, मैं एक ऑटो के पास गया और स्टेशन तक जाने का पूछा तो उसने बताया की यहा से स्टेशन जाने का 50 ₹ लगेगा और जब सवारी आ जाएगा तब वो चलेगा और मैने कहा ठीक हैं और पास के मार्केट में चला गया जहा अधिकतर दुकाने बंद थी क्योकि काफी सुबह का वक़्त था, मैं आधे घंटे तक वही घूमता रहा और फिर सोचा चलो ऑटो स्टैंड पर चलते हैं क्या पता सवारिया आ गई हो, पर अभी भी सवारिया नहीं आई थी क्योकि ट्रैन 9 बजे थी कोई इतनी जल्दी क्यों आएगा, मैंने सोचा चलो पैदल ही चलते हैं इस जगह को अच्छे से देख भी लेंगे और पैसे भी बच जायेंगे और क्या पता रस्ते में कोई मिल जाये, ये सब सोच कर मैं स्टेशन की तरफ चल दिया, मैं जानता था की स्टेशन पहाड़ो के निचले हिस्से की तरफ होगा तो मुझे पहाड़ो से निचे उतरना है, कोई ज्यादा मेहनत का काम नहीं हैं और मेरे थोड़ा आगे जाते है एक चढ़ाई आ गई और थोड़ा आगे चलते ही ढलान फिर चढाई फिर ढलान और मैं पसीना पसीना हो गया, अब मैं बार बार पीछे की तरफ देख रहा था शायद कोई आ जाये और मैं उसकी गाड़ी पर चला जाऊ पर कोई नहीं मिला और मैं लागग 6km उन पहाड़ो पर चला मुझे लगभग 2 घंटे लग गए थे और घडी में 9 बज गए है, मेरी ट्रैन का टाइम हो गया था और ट्रैन कभी भी आ सकती थी, मैं तेजी से चलने लगता हु रास्ता अभी भी 1km बचा हुआ हैं जो मैन सड़क से कट कर सीधा निचे रेलवे स्टेशन की तरफ जाता हैं, अब मैं लगभग पुरे तरीके से पसीने से भीग गया हु, मेरे साथ मेरा भरी बैग हैं,जिससे मुझे चलने में मुश्किल हो रही हैं पर मुझे किसी भी तरह स्टेशन पर पहुंचना हैं वो भी ट्रैन आने से पहले, तभी मेरे पीछे से एक स्कार्पियो गाड़ी आती हुई दिखी, मैंने उस गाड़ी को अपनी और आते हुए देखा पर हाथ नहीं दिया, पर उस गाड़ी वाले ने अपनी गाड़ी रोक दिया और पूछा की कहा जाना हैं मैंने उससे कहा की मुझे स्टेशन जाना हैं तो उसने कहा की वो भी स्टेशन जा रहा हैं उसका एक दोस्त ट्रैन से आने वाला हैं, चलो मैं तुम्हे स्टेशन पर छोड़ दूंगा और मैं उस गाड़ी में बैठ गया और गाड़ी उस ढलान वाले रस्ते पर चल दी जो मैन रोड से कट कर सीधा स्टेशन जाता था, ये जगह वाक़ई में बहुत खूबसूरत थी चारो तरफ पहाड़िया थी और उन पहाड़ियों के बिच बना ये स्टेशन वाक़ई में कमाल का था,
  मैं कुछ ही मिनट में स्टेशन पर पहुंच गया और स्टेशन पर ट्रैन के आने का announcement चल रहा था, मैंने उन जनाब का सुक्रिया अदा किया और भाग कर टिकट काउंटर की तरफ गया वहा मैंने सिल्चर का टिकट लिया और तभी ट्रैन आ गई, हलाकि Lumding और Silcher के बिच यही एक बड़ा स्टेशन हैं जहा ट्रैन का पायलट भी ट्रैन से उतर कर स्टेशन पर नास्ता करता हैं और सारे लोग भी, यहा कुछ ऐसा हैं की जब सब लोग नास्ता कर लेते हैं तब ट्रैन चलती हैं, मुझे भी बहुत भूख लगी थी मैंने भी झट एक प्लेट छोले-चावल ले लिया, एक प्लेट के साथ प्याज मुफ्त थी, साथ ही वहा मक्के के भुने हुए भुट्टे ,कई सारे फलो का सलाद,छोले-चावल, राजमा-चावल और छोटे-छोटे डंडे में लगा भुना हुआ मुर्गा और भुनी हुई मछलिया भी मिल रही थी, ट्रैन से सभी लोग निकल कर चारो तरफ खा रहे थे, थोड़ी देर बाद जब लगभग सभी लोग कहा चुके थे तो ट्रैन ने हॉर्न दिया और और ट्रैन पहाड़ो में बने उन खूबसूरत ट्रैक पर चल पड़ी, रास्ता बहुत ही खूबसूरत था, चारो तरफ पहाड़ और उनके बिच से निकलती ट्रैन कभी पहाड़ो के बिच बनी सुरंगो से निकलती तो कभी झरनो पे बने पुलों से ये वाक़ई में बहुत रोमांचक था, लगभग 2:30 बजे मैं सिल्चर पहुंच गया और अब मेरा मन आज यही सिल्चर रुकने का हैं और अगली सुबह ट्रैन से मिजोरम जाने का हैं, मैं वेटिंग रूम में अपना बैग रख कर बैठ जाता हु और आराम करने लगता हु क्योकि मुझे कही नहीं जाना यही आस पास घूमना हैं और रात को यही सोना हैं और कल सुबह मिजोरम निकलना हैं, अब मैं कल मिज़ोराम जाने वाली ट्रैन देखने लगता हु तो मजोरम जाने वाली ट्रैन शाम के 4 बजे हैं, मतलब अगर मैं आज यहा रुकता हु तो मुझे कल शाम तक का इंतजार करना होगा, मैंने आज ही मिजोरम जाने का सोचा, अब घडी में 3 बज रहे थे और 1 घंटे बाद ट्रैन थी , मैं टिकट काउंटर पर जाता हु और मिजोरम जाने वाली पैसेंजर ट्रैन का एक टिकट ले लेता हु, जो 25₹ का हैं और ट्रैन सबसे आखरी प्लेटफार्म 4 पर खड़ी थी,
अब मैं ट्रैन के पीछे से ट्रैन के इंजन की तरफ बढ़ने लगता हु ये देखने के लिए की कौन सी बोगी ज्यादा खाली हैं ताकि मैं उसमे सो सकू और साथ ही मिज़ो लोगो को ढूढ़ रहा था ताकि उनसे बाते कर सकू और मुझे एक बोगी में दो लड़किया दिखी, वो दोनों बहुत ही खूबसूरत थी, देखते ही मुझे लग गया की वो मिजोरम से हैं और मैं उसी डब्बे में चढ़ गया और पास की खाली सीट पर बैठ गया, वो दोनों लड़किया खिड़की के पास बैठी थी जिधर सिर्फ एक सीट होता है और मैं उनके बगल में बड़ी सीट पर बैठा था, अब मैं ट्रैन के चलने का इंतजार करने लगा ताकि मैं उन लड़कियों से मिजोरम और वहा के बारे में बात कर सकू, मैने मिजोरम के बारे में बहुत सारी बाते सुनी थी, मैं जानना चाहता था उनमे से कितनी बाते सही हैं और कुछ जानकारी बटोरना चाहता था, हलाकि ये सब तो एक बहाना था सच में मैं उनसे बाते करना चाहता था, थोड़ी देर में ट्रैन चली और मैंने उनसे बात करना शुरू किया और बात करते ही मुझे पता लग गया की इन्हे हिंदी नहीं आती हैं फिर मैंने इंग्लिश में बात करना शुरू किया और उन्हें इंग्लिश भी नहीं आती थी, फिर मैने उसे अपने डायरी पर इंग्लिश में लिख कर पूछा की "which language do you understand " और वो समझ गई और उसने मुझे डायरी पर ही लिख कर जबाब दिया मिज़ो और थोड़ा इंग्लिश, फिर मैने उससे उसका नाम पूछा और उसने अपना नाम Nu-i बताया और उसकी बहन जो उसके साथ थी उसने भी अपना नाम बताया पर उसका नाम थोड़ा कठिन था जिसे मैं कभी याद न कर सका, मैने एक दो सवाल और पूछे और उसने डायरी पर ही लिख दिया और अब बातो का सिलसिला शुरु हो गया था, कई बार वो अटक जाती तो मुझे उसे इसारो से समझाना पड़ता, फिर मैंने उनसे बॉलीवुड के गाने पूछे तो वो एक दो गाने जानती थी साथ में उसकी बहन जो उसके साथ थी वो भी कुछ बॉलीवुड गाने जानती थी, बस शुरु की एक लाइन ही गा पाती थी और फिर मैं उसे थोड़ा और गा के पूरा कर देता था और वो कहती Yes! Yes! This Song, ये दोनों लड़किया बहुत ही अलग थी, बात करने में झिझक नहीं रही थी, मैने सुना था की की मिजोरम के लोग खुले विचारो के होते हैं और मिजोरम इंडिया का foreign हैं और शायद मैने ठीक सुना था, फिर थोड़ी देर की और बातो के बाद उसने मुझे अपनी मिज़ो लैंग्वेज सीखना शुरु किया
Thank You=K lam e, How are you = I dam em, Good Morning= Zing Chibai
 और बहुत देर तक सिखाती रही और हम ऐसे ही बात करते चलते चले जा रहे थे, अब जब हम आखरी स्टेशन बैराबी पहुंचने वाले थे तो उसने मुझे पूछा आज रात कहा रुकोगे तो मने उसे बताया की आज रात मैं इसी ट्रैन में सो जाऊंगा तो उसने कहा की तुम मेरे घर सो सकते हो कोई प्रॉब्लम नहीं हैं और मैंने कहा की ठीक हैं,
तो अब मैं ट्रैन में सोने के बजाए उसके घर सोने वाला था, थोड़ी देर में ट्रैन Bairabi स्टेशन पर पहुंची और मैं उनके साथ ट्रैन से उतरा और उनके साथ चलने लगा नूई मेरे आगे चल रही थी और उसकी सिस्टर मेरे पीछे और हम स्टेशन के बाहर निकलने, स्टेशन के बहार अँधेरा था और बहार पहले से ही कोई उनका जानने वाला ऑटो ले कर आया था, उनका नाम बेंजामिन था और वो लगभग मेरी ही उम्र के थे, हम सब ऑटो में बैठे और घर की तरफ चल दिए, उसका घर स्टेशन के पास ही था हम सब पैदल भी जा सकते थे, मैं जब घर पंहुचा तो वहा थोड़ा अँधेरा था पर घर के अंदर लैंप जल रहा था, शायद बिजली चली गई थी, सबसे पहले नूई अंदर जाती हैं और मुझे अंदर आने का इसारा करती हैं फिर उसकी सिस्टर अंदर जाती है और फिर बेंजामिन और सबसे अंत में मैं अंदर जाता हू, ये घर काफी बड़ा था और बम्बू से बना था, जब मैं अंदर जाता हु तो अन्दर चार बड़े सोफे लगे होते हैं और उनमे से तीन पर उनके पापा, ममी और उनका भाई और भाभी बैठे हुए थे और एक सोफे पर मैं और बेंजामिन बैठ जाते हैं, अब सब मेरी तरफ देख रहे होते हैं और नूई की ममी काफी खुश लग रही होती हैं शायद वो मेरे बारे में जानना चाहती हैं, यहा उतर भारत से अक्सर बहुत काम लोग ही आया करते हैं या फिर लगभग नहीं के बराबर, शायद यहा सभी उत्सुक हैं मेरे बारे में जानने के लिए, बेंजामिन मुझसे बाते करने लगते हैं और मेरे बारे में पूछते हैं तो मैं उन्हें बता देता हु की मैं एक Traveler हु और मिजोरम घूमने आया हु वो बहुत ही खुस होते हैं और मेरा वेलकम करते हैं, नूई की बहन अभी अपने पापा को मेरे बारे में बता रही होती हैं फिर बेंजामिन उसके पापा और ममी को मेरे बारे में बताते हैं, नूई का भाई और उसकी भाभी बेंजामिन की बातो को ध्यान से सुन रहे हैं और मुस्करा रहे हैं क्योकि मैने उन्हें अभी अपनी कहानी बताया था की कैसे मैंने पूरा भारत घुमा हैं, जिसे बेंजामिन मिज़ो में बता रहे हैं, ये सभी लोग बहुत ही फ्री माइंडेड लोग थे मुझे ऐसा लगा की ये लोग उत्सुक हैं मेरे बारे में जानने के लिए, नूई के पापा हलकी हलकी हिंदी बोल लेते थे और बहुत हद तक सब समझ लेते थे, उन्होंने मुझे टूटी-फूटी हिंदी में पूछा खाना खाओगे और मैने कहा की अगर बना है तो ठीक हैं नहीं तो सुबह खाएंगे तो मुझे बेंजामिन ने बताया की मिजोरम में सभी लोग शाम के 6 बजे या अधिक से अधिक 7 बजे तक खाना खा लेते हैं, क्योकि यहा जल्दी रात हो जाती है और ऐसे ही जल्दी सुबह भी होती हैं ( नार्थ east का टाइम delhi के टाइम से 1:30 hr आगे चलता हैं पर वहा अलग टाइम जोन नहीं हैं ) और मैंने कहा ठीक हैं हम सुबह देखेंगे, फिर सभी लोग थोड़ी देर तक बात चित करते रहे और फिर नूई की मम्मी ने सोफे पे रखे गद्दों को निचे रखा फिर उसके ऊपर मोटा बिस्तर बिछाया और एक अच्छी तकिये के साथ एक मोटी रजाई दिया ओढ़ने के लिए क्योकि ठण्ड बहुत थी, फिर नूई और उसकी बहन ने मुझे गुड नाईट कहा और और नूई की मम्मी ने भी मिज़ो में कुछ कहा शायद नूई की मम्मी ने भी यही कहा होगा की अच्छे से सो जाओ " एक माँ का दिल "
एक बंजारे को और क्या चाहिए, किसी ने एक बंजारे को घर दिया, सोने को बिस्तर और फिर इतना सम्मान, इंसानियत आज भी जिन्दा हैं और वो यही हैं हम सब के बिच, ये रात मेरी उन खूबसूरत रातो में से एक थी जिन्हे जीने का गर्व मुझे आज भी हैं

Day17

आज सुबह मैं जल्दी उठ गया था और अपना सामान पैक करने लगा था क्योकि आज मैं अपने उस सफर पे निकलने वाला था जिसकी प्लानिंग तो मैने बहुतो बार किया था पर कभी जा नहीं पाया था, मुझे नागालैंड से लुमडिंग रेलवे स्टेशन जाना था जो की 80km हैं, ट्रैन से 2 घंटे का सफर
स्टेशन पर मेरी ट्रैन थोड़ा लेट थी तो मैं वही स्टेशन पर थोड़ी देर बैठा रहा और कुछ नए फ्रेंड बना लिए जो नागालैंड से थे और काम के सिलसिले में मुंबई जा रहे थे, फिर हम सब ने एक साथ ट्रैन लिया और गुवाहाटी की तरफ चल दिए, यहा से दूसरा स्टाप मेरा स्टेशन था और इसके बाद मैं लुमडिंग रेलवे स्टशन से ट्रैन लेने वाला था जो New Haflong होते हुए सिल्चर तक जाती हैं, मैं इस ट्रैन रूट पर सफर करना चाहता था, हलाकि मैं पैसेंजर ट्रैन से जाना चाहता था पर वो सुबह ही चली जाती हैं, खैर कोई बात नहीं मेल ट्रैन से चलेंगे, रास्ता तो वही रहेगा
ट्रैन से पहला स्टॉप दिफू रेलवे स्टेशन आया और फिर लुमडिंग, घडी में लगभग 12 बज रहे थे और अगली ट्रैन जिससे मैं New Haflong जाना चाहता था वो 2 घंटे बाद यानी 2 बजे थी, मैं थोड़ी देर इसी स्टेशन पर घूमता रहा, फिर मैंने अपने मोबाइल में ट्रैन के बारे में चेक किया तो मुझे पता चला की ट्रैन तो 7 घंटे लेट हैं, अब मेरे पास दो ऑप्शन थे एक ये की मैं यही आस-पास की जगहों पे घूम लू और आज रात यही रुक जाऊ और अगली सुबह पैसेंजर ट्रैन से चला जाऊ और दूसरा की मैं रोड पे पैदल जाऊ और फिर वहा से लिफ्ट के लिए कोशिश करु जो थोड़ा मुश्किल भरा था क्योकि दिन का काफी वक़्त निकल गया था, शाम को ठिकाना ढूढ़ना मुश्किल हो सकता था
मैंने दूसरा वाला चुना क्योकि मैं अब यहा से आगे बढ़ना चाहता था, यहा से मैन रोड लगभग 3km था जिसे मुझे पैदल ही तय करना था और मैं स्टेशन से मैन रोड की तरफ चल दिया,स्टेशन से थोड़ा आगे चलने के बाद मुझे रेलवे लाइन के पास से एक छोटी सड़क मैन रोड की तरफ जाती हुई दिखी, मैं उस सड़क पर गया इस उम्मीद में की क्या पता वहा से कोई लिफ्ट मिल जाये और मैं सड़क तक जल्दी पहुंच जाऊ, तो अब मैं उस छोटी सड़क पर चलने लगा था, सड़क के साथ ही वो गांव भी लगता था और मैं उस सड़क के सहारे उस गांव से आगे बढ़ने लगा, पर गांव के अन्त में वो सड़क भी खत्म हो जाती थी, मैं फिर से रेलवे लाइन पर आ गया और रेल लाइन के साथ आगे बढ़ने लगा, थोड़ा और आगे जाने पर खुला मैदान आ गया जहा मैं रेल लाइन से दूर भी चल सकता था,मैं चलता रहा क्योकि हाईवे अभी दूर था, यहा रेलवे लाइन पे मरम्मत का काम चल रहा था कई सारे वर्कर वहा काम कर रहे थे, अब मैं लगभग आधा आ चुका था, मैं और आगे बढ़ा अब रास्ता बिलकुल सुनसान था लगभग 1km और आगे चलने के बाद मैं उस ओवर ब्रिज के पास पहुंच गया जो रेलवे लाइन के ऊपर से जाता था और हाईवे था
अब मैं ओवर ब्रिज पर पहुंच गया था और मुझे किसी गाड़ी में लिफ्ट की तलाश थी, मैंने उस जगह को देखा वो जगह काफी ढलान पे थी ओवर ब्रिज से गाड़िया काफी तेज़ रफ़्तार से आ रही थी और रफ़्तार में कोई गाड़ी नहीं रोकता, मैंने थोड़ा और आगे जाने का सोचा और थोड़ा और आगे चल कर एक जगह जा के रुका जहा हल्का सा मोड़ था, मोड़ पे लोग अपनी स्पीड को धीरे रखते हैं और ध्यान भी ज्यादा देते हैं
यहा से चारो तरफ बहुत ही खूबसूरत नजारा था मेरे पीछे एक छोटा सा पहाड़ था और सामने की तरफ भी कुछ छोटे बड़े टीले और पहाड़ थे और बीच के मैदानी जगहों में खेती की गई थी सड़क के अलावा वहा सब कुछ हरा था अब लगभग 40 मिनट हो गए थे और मुझे कोई गाड़ी नहीं मिली थी और शाम भी ढल चुकी थी, मुझे यहा तक आने में ही काफी वक़्त लग गया था और ऊपर से यह कोई गाड़ी भी नहीं मिल रही थी, अब मैंने प्लान बना लिया था की अगर मुझे गाड़ी नहीं मिलती हैं तो मैं पिछले स्टेशन पे चला जाऊंगा और वहा सो जाऊंगा
मैंने दो ट्रको को अपनी और आते देखा मैंने उससे रुकने का इशारा किया और पिछले वाले ट्रक ने रोक दिया, मैंने उससे आगे जाने का बात किया और वो बोला ठीक हैं और मैं ट्रक में बैठ कर चल दिया, मैं आज Haflong तक जाना चाहता था मैंने सिर्फ इस जगह का नाम सुना था वह एक बड़ा रेलवे स्टेशन हैं जिसका नाम New Haflong रेलवे स्टेशन हैं, मैंने ट्रक वाले से पूछा की आप कहा तक जाओगे और उसने मुझे बताया की वो Haflong तक जायेगा जहा तक मुझे जाना था, ये मेरे लिए अच्छी खबर थी पर बुरी खबर ये थी की अब अँधेरा होने लगा था और Haflong स्टेशन सिटी से दूर था
मैंने सोचा चलो रात की रात में देखेंगे और मैं चलता चला जा रहा था, रास्ता वाक़ई बहुत खूबसूरत था, ये मेरी उम्मीद से से भी ज्यादा खूबसूरत था थोड़ी देर बाद उस रुट का पहला रेलवे स्टेशन Manderdisa आया, जो की छोटा रेलवे स्टेशन था पर बहुत ही खूबसूरत था जो सड़क से साफ दिख रहा था और रेलवे स्टेशन के दूसरी तरफ हरे पहाड़ थे, फिर हम और आगे बढ़ चले और रस्ते पूरी तरह से पहाड़ो से होते हुए निकल रहे थे, ये रस्ते पहाड़ो की चोटी को समतल करके बने थे जिससे दोनों तरफ दूर तक सिर्फ हरे जंगल दिख रहे थे, और ये हाईवे भी बहुत बढ़िया बना हैं साथ ही रास्ता कई सारे सुरंग से होता हुआ जाता हैं इन रास्तो पर हमारा ट्रक फर्राटा भरता हुआ चलता चला जा रहा था और मैं उड़ता चला जा रहा था आजाद हवाओ में परिंदो की तरह
अब पूरी तरह से अँधेरा छा गया था और अब वक़्त था खाना बनाने का हमारा ट्रक एक सुरंग को पार करके रुका, जहा पहले से 3,4 बम्बू के घर बने हुए थे, यहा एक घर ऐसा था जहा कोई नहीं था, घर के बाहर टिन लगा था जिसके निचे ड्राइवर ने अपना केरोसिन स्टोव रखा, शायद ड्राइवर इस जगह को पहले से जनता था , पास ही कुछ लाल मिर्च पड़ी थी जो दिन में सूखने के लिए डाली गई थी, घर के एक तरफ पाइप से पानी की सुविधा थी शायद पास के पहाड़ो से पानी आता था, हमने वह मुँह धोया और खाना बनाने का कार्यक्रम शुरु हो गया, यहा दो ट्रक थे एक जिसमे मैं आया था और एक मेरे आगे चल रहा था वो भी यही खड़ा था ये दोनों ट्रक एक ही जगह जा रहे थे और आज सबका खाना भी एक ही में बन रहा था, मुझे ले कर वहा 6 लोग थे, तीन इस ट्रक के और दो दूसरे ट्रक के
खाना हमारे ट्रक का ड्राइवर बना रहा था और मैं आज की रात रुकने का सोच रहा हु, सामने एक दुकान हैं जहा कुछ लोग हैं, साथ ही एक और घर हैं शायद यहा रुकने का कुछ जुगाड़ बन जाये और मैं उस दुकान पर जाता हु और उनसे पता करता हु की यहा कोई जगह हैं जहा मैं रुक सकू तो उसने बताया की यहा तो ऐसी कोई जगह नहीं हैं, हॉफलोंग में सरे होटल हैं फिर मैंने कहा मैं एक ट्रवेलेर हू और आज कही रुकना चाहता हू उसने कहा नहीं यहा तो कोई जगह नहीं हैं, अब स्टेशन का सी सहारा था, मैं फिर खाना बनाने की जगह आ कर बैठ जाता हू और खाना बनते हुए देखता रहता हू, थोड़ी देर में वहा बारिश शुरु हो जाती हैं पर हमारे ऊपर टिन शेड लगी हुई हैं तो अंदर सब सही हैं थोड़ी देर की बारिश के बाद बारिश रुक जाती हैं
ये घर कुछ लड़को का हैं जो शायद दिन में कही काम करते हैं और रात में यहा सोते हैं, अब वो सब भी आ चुके हैं, मैं उनके पास जाता हू और पता करता हू क्या आज रात यह सोया जा सकता हैं, ये सभी लड़के लगभग मेरी ही उम्र के हैं और अब खाना बनाने की तैयारी में हैं, मैं उनमे से एक से बात करता हू, मैं उसे बताता हू की मैं एक ट्रवेलेर हू और यहा कही आस पास रुकना चाहता हू, मैं उससे ये भी कहता हू की मेरे पास स्लीपिंग बैग हैं और अगर कोई जगह मिल जाये तो काम बन जाये मैं वहा सो सकता हू, तो वो मुझे बताता हैं हमारे पास एक्स्ट्रा बेड़ नही हैं, पर स्लीपिंग बैग डाल कर सोया जा सकता हैं और मैंने कहा ठीक हैं, अब मेरा सोने का काम बन गया था
अब मैं उस घर से निकल कर बहार आता हूँ जहा खाना बन रहा था और उस ड्राइवर को बताता हू की यह सोने का इंतजाम हो गया हैं, तो मुझे वो ड्राइवर कहता ही उसके हिसाब से यह जगह ठीक नहीं हैं और ये लड़के भी दारुबाज हैं, वहा दूसरे ट्रक का भी ड्राइवर होता हैं और हम सब लगभग एक ही उम्र के थे, उसने मुझसे कहा की आज रात वो ट्रक में नहीं सोयेगा क्योकि उसके सोने का इंतजाम उसके आखरी पड़ाव पर हैं अगर मैं चाहू तो उसके ट्रक में सो सकता हू, ये मेरे लिए एक सुरछित जगह थी और मेने कहा की ठीक है, अब मेरे सोने का ठिकाना बदल गया था अब मैं एक ट्रक में सोने वाला था
थोड़ी देर में खाना भी तैयार हो गया और हम सब एक साथ बैठ गए खाना खाने के लिए, सभी लोगो ने इधर-उधर जगह लिया और मेरे लिए वहा पड़ी कुर्सियां और मेज लगा दिया गया साथ ही एक बोतल पानी भर के रख दिया, अब हम सबने खाना खाना शुरु किया, मैंने भी आज दिन में कुछ नहीं खाया था और जब आपको भूख लगी हो तो हर खाना बढ़िया होता हैं, वैसे भी खाना अच्छा बना था, खाने में दाल चावल और आलू-चने की सब्जी थी
हम सब खाना कहा कर उठे और फिर ट्रक वाला बर्तनो को धोने लगा मैं ट्रक में जा कर थोड़ी देर बैठा रहा फिर अपना बैग दूसरे ट्रक में डाला और थोड़ी देर बाद हम Haflong की तरफ निकल पड़े, थोड़ी देर तक तो मैं जगा रहा फिर निचे की सोने की जगह उन्होंने मुझे दे दिया, मैने अपना स्लीपिंग बैग निकला और अपना बैग सर के निचे रख कर सो गया  

Day 13 to Day16

Nagaland जिसे city of festival भी कहा जाता हैं क्योकि यहा लगभग पुरे साल अलग अलग tribes अपने अपने त्यौहार मनाते हैं, जिससे यहा पुरे साल त्यौहार चलता रहता हैं, पर नागालैंड का सबसे बड़ा त्यौहार Hornbill हैं जो दिसम्बर के साथ शुरु होता हैं और 10 दिन तक चलता हैं साथ ही यहा की ज्यादा आबादी christan है तो यहा क्रिसमस भी एक बड़ा त्योहार हैं और क्रिसमस की रौनक यहा नवंबर से ही देखा जा सकता हैं
मैं नागालैंड के दीमापुर में अपनी बुआ के घर रुका हुआ था जो दीमापुर के आर्मी कैंप के पास हैं, Yha से नजदीक ही दीमापुर का सुपरमार्केट हैं जहा झा हर तरह का नॉन-वेग मिलता हैं डॉग मीट भी

Day 12

कल ही मैं मैंने पंगसु पास की संघर्ष भरी यात्रा किया था (link ↓↓ ) और अभी मैं तिनसुकिया रेलवे स्टेशन पर हू, आज मैं नागालैंड जाने वाला हू, दरअसल वहा मेरी बुआ रहती हैं और आज मेरा प्लान वहा जाने का हैं, ट्रैन से अधिक से अधिक 5 घंटे लगेंगे, तो आज मैं बहुत ही रिलैक्स हू, मैं आज शाम तक वहा पहुंचना चाहता हू,आज मुझे कोई जल्दी बजी नहीं हैं, मैं स्टेशन पर बैठा था,मुझे पता था यहा ट्रैन में बैठूंगा और नागालैंड उत्तर जाऊंगा और फिर बुआ के घर पैदल ही, कोई मेहनत का काम नहीं, थोड़ी देर रेस्ट करने के बाद मैंने मोबाइल में ट्रैन देखा और एक ट्रैन लगभग 1 घंटे बाद थी
अभी ट्रैन के जाने के जाने में वक़्त था तो मैं स्टेशन पर घूमने लगा, स्टेशन पर एक तरफ मैने खूबसूरत पेंटिंग देखा जो असम के रीती रिवाजो को दिखता था, उसके सामने एक डायरी राखी थी, वो डायरी उस आर्टिस्ट की थी जिसने वो पेंटिंग बनाया था, जिस किसी को पेंटिंग के बारे में दो शब्द लिखना होता वो उस डायरी में लिख देता, मुझे वो पेंटिंग काफी अच्छी लगी तो मैने भी उसकी तारीफ में दो लाइन लिख दिया
थोड़ी देर बाद मेरी ट्रैन, (डिब्रूगढ़ चंडीगढ़ 15903) आई और मैं ट्रैन में हो लिया, ट्रैन में ज्यादा भीड़ नहीं थी सब कुछ सामान्य था, ये एक मेल ट्रैन थी, हलाकि मैं पैसेंजर ट्रैन ढूढ़ रहा था, उसका किराया भी काम होता और मैं आराम से सब कुछ देखते हुए जाता हूँ, पर वो बहुत लेट थी तो मैंने मेल ट्रैन लेने का सोचा था
मैं ट्रैन में बैठ गया और थोड़ी देर में ट्रैन चल पड़ी Nagaland की तरफ, और मैं अपनी पहली नार्थ ईस्ट यात्रा के बारे में सोच रहा था, तब मुझे Majuli आइलैंड जाना था और मैं रस्ते में ही एक छोटे से स्टेशन पर उतरा था, जो इसी ट्रैन रूट के बिच में पड़ता हैं,मैं यही सब सोच रहा था और ट्रैन चलती चली जा रही थी
ट्रैन लगभग 1 घंटे चली थी, मैं डिब्रूगढ़ से आगे था और अगले बड़े स्टेशन Simaluguri से थोड़ा पहले, मुझे ट्रैन में कुछ जलने की बार बार गंध आ रही थी, ऐसी गंध ट्रैन से आती है जब ब्रेक लगता है और वो हलकी होती पर यहा लगातार आ रही थी, मुझे पहले कुछ शक हुआ पर मुझे लगा हो सकता है ब्रेक ही हो और मैं ट्रैन में बैठा रहा और ट्रैन चलती रही अब वो गंध बहुत तेजी से आने लगी थी अब मुझे लगा की कुछ गड़बड़ हैं मैने ट्रैन के रुकने का इंतजार किया और थोड़ी देर बाद एक छोटा स्टेशन आया जहा ट्रैन दूसरी ट्रैन को पास देने के लिए रुकी और मैं ट्रैन से बहार निकला देखने के लिए की असल में ये गंध कहा से आ रही हैं तो मैने देखा की मेरे पीछे की बोगी जो की स्लीपर बोगी थी के पहिये से बहुत तेज़ी से धुआँ निकल रहा था और पहिया अंदर की तरफ से जल रहा था और कमाल की बात तो ये हैं की कुछ लोग वही गेट पर घंटो से जमे थे और उन्हें कोई फ़र्क़ ही नहीं पड़ रहा था, ट्रैन जले तो जले, अभी मैं देख ही रहा था तब तक ट्रैन ने हॉर्न दे दिया और मैं बिना टाइम खराब किये तुरंत इंजन की तरफ भगा जो की घटना की जगह से तीन बोगी आगे था और मैंने पायलट के पास पहुंच कर उस जलते हुए पहिये के बारे में बताया, फिर दोनों पायलट मेरे साथ उस कोच तक आये और उन्होंने भी उस पहिये को देखा और उन्होंने आते ही कहा की अगर हम थोड़ा और आगे पूरी तफ्तार पे गए होते तो कोई हादसा हो गया होता क्योकि वो पहिया अंदर से जल कर पूरी तरह चिपक गया था
पायलट ने कण्ट्रोल रूम में फ़ोन किया और फिर ट्रैन के उस बोगी को निकल कर बाकि ट्रैन को जोड़ दिया गया और फिर ट्रैन चली और मैं शाम को नागालैंड अपनी बुआ के घर पंहुचा गया

Note- हम सभी को सार्वजनिक सम्पतियो का ध्यान जखन चाहिए क्योकि यह हमारे लिए ही हैं

Day11

कल रात जब मैं Tinsukia रेलवे स्टेशन पर पंहुचा था तभी मैने Ledo ( आखरी रेलवे स्टेशन ) तक जाने वाली ट्रैन देख लिया था, जो अगले दिन की सुबह 5 बजे तिनसुकिया रेलवे स्टेशन से जाएगी, मैं यहा Pangsu पास तक जाने के लिए आया हू, जो India और Myanmar का बॉर्डर हैं, यही रास्ते में एक जगह हैं Digboi , डिगबोई एशिया की सबसे पहली आयल रिफाइनरी हैं, मैने इसका नाम काफी सुना था तो सोचा एक बार यहा भी हो लेंगे
Tinsukiya से Ledo के लिए आज सुबह 5 बजे ट्रैन थी और मैं आज लगभग 4 बजे ही उठ गया था और लगभग 4:30 पे मैं स्टेशन पे आ कर बैठ गया, मुझे इंतजार था उस Ledo डेमो ट्रैन का जो Tinsukia से खुलती हैं और आखरी स्टेशन Ledo तक जाती हैं, पर रेलवे स्टेशन के बोर्ड पर किसी Ledo ट्रैन का नाम ही नहीं हैं, मैंने फिर अपने मोबाइल में देखा तो वह ट्रैन दिखा रहा था पर बोर्ड पे ऐसी कोई ट्रैन का नाम ही नहीं था और न ही उस ट्रैन का नंबर, मैं inquiry पे गया और पूछा तो पता चला की एक और Tinsukia रेलवे स्टेशन हैं जहा से पैसेंजर ट्रैन जाती हैं
मैं तुरंत स्टेशन से बहार निकला और एक ऑटो लिया छोटा रेलवे स्टेशन के लिएf, छोटा रेलवे स्टेशन, बड़े स्टेशन से थोड़ा दूर था और जब तक मै पहुंचा ट्रैन चली गई थी, और दूसरी ट्रैन अब से 4 घंटे बाद थी तो मैने बस से जाने का सोचा और पास के बस स्टैंड से अगली बड़ी जगह बोगापनी के लिए बस लिया जो Digboi के पास था, जब मुझे बस ने छोड़ा तो वहा से लगभग 6 कम डिगबोई था, मैने पैदल ही Digboi को explore करने का सोचा, और वही घुमत रहा, पहले डिगबोई के पास के रिहायसी इलाके और फिर फैक्ट्री के पास से निकला, डिगबोई का रेलवे स्टेशन रिफाइनरी के पास ही था, ट्रैन आने से लगभग एक घंटे पहले मैं डिगबोई रेलवे स्टेशन पर पहुँच गया और वह ट्रैन 10 बजे थी, मैने आज सुबह से ब्रश भी नहीं किया था तो वही ब्रश किया और फिर रेलवे स्टेशन पर बैठा रहा थोड़ी देर बाद मेरी ट्रैन आई और मै उस पे हो लिया, ट्रैन में भीड़ नहीं थी और बाहर खूबसूरत नजारा था, मैं कभी सोचता था की इंडिया के इस हिस्से में लोग कैसे होते होंगे, कैसे रहते होंगे और भी कई सारी बाते, पर अब सब सामान्य सा लगने लगा था, जहा जाना कल तक मेरे लिए असंभव था( read last post #day17) अब मैं वहा हू और मेरे हौसला बुलंद है, मैं इंडिया के बॉर्डर पे जा रहा हू,
ट्रैन में मुझे एक लड़का मिला जो Ledo की तरफ का था उसने मुझे बताया की Pangsu Pass हफ्ते में 2 दिन ही खुलता है, पर मुझे यकीं नहीं हुआ और मैने सोचा की वहा जा कर पता करूंगा, और बंद भी हुआ तो क्या जहा तक जा सकूंगा वही तक चला जाऊंगा, फिर आखरी स्टेशन Ledo आया और मैं स्टेशन से निकल कर बाहर रोड पर आ गया, ये एक छोटा स्टेशन हैं जहां ज्यादा भीड़ नहीं होती, दोपहर हो गई थी और मुझे भूख भी लगी थी तो सोच क्यों ना कुछ खा लू और एक रेस्टोरेंट में गया और वहा नार्थ इंडिया के भी फ़ूड थे तो मैने वहा खाना खाया,
अब दोपहर के लगभग 12 बज गए, मैने वहा कई लोगो से Pangsu Pass के बारे में पूछा पर किसी को कुछ पता नहीं था (शायद यहा के लोग उधर नहीं जाते और ये बात मुझे तब समझ में आया जब मैं वहा पंहुचा)
अब मैं लिफ्ट के लिए इंतजार करने लगा पर आज मेरे लिए वक़्त भी बहुत कीमती था क्योकि यहा रात में गाड़िया नहीं चलती और मैं फस सकता था, मैने तुरंत एक पब्लिक ऑटो लिया ताकि मैं अगले स्टॉप Jagun तक जा सकू और वहा से किसी की गाड़ी में लिफ्ट के लिए कोशिश करूंगा, थोड़ी दूर चलने के बाद मैने लेखपानी रेलवे स्टेशन का बोर्ड देखा, मैं जब यहा आया तो सोच रहा था की यहा का आखरी स्टेशन तो गूगल पे Lekhpani दिखा रहा था पर ट्रैन वहा तक गई ही नहीं, दरअसल वहा स्टेशन का सिर्फ बोर्ड लगा है, रेलवे लाइन नहीं है, शायद पहले यहा छोटी लाइन हुआ करती थी जो अब बंद हो गई हैं, ऑटो ने मुझसे 25₹ लिए और लगभग 20 कम आगे Jagon नाम की जगह पर छोड़ दिया, यहा एक तिराहा था जहा से एक सीधा रास्ता Pangsu Pass के लिए जाता था,
यहा से अगली बड़ी जगह Jairampur थी जो लागग 12 KM थी मैने यहा लिफ्ट लेने का सोचा और ऑटो स्टैंड से थोड़ा आगे जा कर किसी गाड़ी का इंतजार करने लगा, वही थोड़ी दूर पर एक ट्रक खड़ा था, मैं उस ट्रक के पास गया और ट्रक वाले से थोड़ी आगे तक ले चलने के लिए बात किया पहले तो उसने कहा की वो वहा नहीं जायेगा, फिर अगले कस्बे Jairampur तक छोड़ने के लिए राजी हो गया, जो की असम और अरुणाचल का बॉर्डर हैं, ट्रक वाले ने मुझे अरुणाचल के अंदर Jairampur मार्केट में छोड़ दिया, अब मुझे एक बार फिर लिफ्ट के लिए कोशिश करना था, अब मुझे यहा से आखरी गांव Nampong जाना था, जो 20KM हैं जो पहाड़ी इलाका हैं,
मैं फिर से रोड के एक साइड पे खड़ा हो गया और लिफ्ट मांगना शुरु किया, पहली कार आई और मैने उनसे थोड़ा आगे छोड़ने के लिए कहा तो उन्होंने कहा की उनका घर पास ही है और फिर चले गए
फिर दूसरी कार आई उसमे आगे दो लड़के थे और पीछे 6 ,7 स्कूल बचे थे, शायद स्कूल से उन्हें घर ले जा रहे थे, मैने मन मे कहा ये तो खुद ही ओवर लोड है, और फिर वो भी चले गए
ऐसे ही 5,6 गाड़ियों के बाद एक कार आई जिसमे आगे की सीट पर एक आदमी और एक औरत थे, वो दोनों पति-पत्नी, मैने उनसे थोड़ा आगे जाने का कहा तो उन्होंने बताया की वो आखरी गांव Nampong तो नहीं जायेंगे पर जहा तक जायेंगे वहा तक छोड़ देंगे जो 5km आगे था, और मैं उनकी कार में हो लिया, हम बात करते हुए आगे बढ़ते गए, मैने उन्हें अपने बारे में बताया मैं कौन हू और यहा क्यों आया हू और भी कई बाते, उन्हें अच्छा लगा कोई Traveler उनकी जगह देखने आया है और मुझे भी लोकल लोगो से मिल कर अच्छा लगता है
अब मैं फिर से एक बार खुद को एक तिराहे पे खड़ा पता हू, एक बार फिर से मुझे कोशिश करना है ताकि मैं आखरी गांव Nampong तक जा सकू,अभी भी Nampong (आखरी गांव ) यहा से दूर था, मेरे सामने एक सड़क थी जो पास के एक गांव की तरफ जाती हैं, जिधर वो कार मुझे छोड़ कर चली गई, सड़क के बगल में एक किराने की दुकान थी जो मैन रोड से भी लगती थी और पास में एक दो और छोटी दुकाने थी, बाकि सब हरा हरा जंगली इलाका था, और जिधर मुझे जाना था उधर मुझे सिर्फ पहाड़ दिख रहे थे और उन पहाड़ो के बिच में एक सड़क, मुझे किसी गाड़ी का इंतजार था,
थोड़ी देर तक तो कोई गाड़ी नहीं आई , शायद उधर बहुत काम लोग रहते हो, मुझे एक टाटा ऐस गाड़ी अपनी तरफ आते हुए दिखी, मने उससे हाथ दिखाया और वो रुक गया, उसकी गाड़ी पीछे पूरी तरह से भरी हुई थी, जो सीमेंट और कंस्ट्रक्शन मेटेरियल ले कर Nampong जा रहा था, और आगे ड्राइवर के साथ एक आदमी था और थोड़े सामान भी, मैने उनसे Nampong तक जाने की बात कहा तो उन्होंने कहा जगह तो नहीं है, फिर कहा अच्छा ठीक है और उन्होंने थोड़ा जगह बना दिया, अब मैं अपना बैग सामने की तरफ घुटनो पर रख कर अंदर बैठ गया और हम तीनो Nampong की तरफ चल दिए, सब कुछ बहुत ही खूबसूरत था दूर तक छोटे पहाड़ और बिच-बिच में चाय और फलो की खेती, रास्ता बहुत ही खूबसूरत था,पूरा रास्ता हरे पेड़ो से घिरा था साथ ही पहाड़ो की साफ सुथरी हवा और अचूक शांति, एक एक लम्हा मेरे दिल दिमाग में कैद होता चला जा रहा था और मैं आजाद चला जा रहा था, परिंदो की तरह
गाड़ी wala गांव के बहार ही रुक गया पर, पर अभी मुझे थोड़ा और आगे जाना था शायद कोई लिफ्ट या फिर पैदल ही
गाड़ी wala गांव के बहार ही रुक गया पर, पर अभी मुझे थोड़ा और आगे जाना था, यहा से लगभग 11 km आगे Pangsu Pass था और मुझे अभी और आगे जाना था, ये गांव बहुत ही खूबसूरत था और मैं ये सब देखता हुआ पैदल ही चलता चला जा रहा था थोड़ा आगे बाये तरफ छोटे बचो का स्कूल था और अभी उनकी छुट्टी हुई थी सब स्कूल से बहार निकल कर घर की तरफ जा रहे थे, मैं और आगे बढ़ा और पीछे की तरफ भी देख रहा था शायद कोई गाड़ी आये तो उसमे हो कर आगे निकल जाऊ और मैने पीछे से एक कार आते हुए देखा मैने उसे हाथ दिया और वो रुक गया,उस कार मे एक लड़का था जो लगभग मेरी ही उम्र का था, मैने उससे कहा की मुझे Pangsu pass तक जाना है और उसने कहा की वो पंगसु तक नहीं जायेगा उसका घर गांव में है और आज वहा नहीं जा सकते, पास सिर्फ सुबह खुलता है और उसके लिए परमिट चाहिए होता है, फिर उसने कहा की मैं आपको goverment के ऑफिस तक छोड़ सकता हू,जो मेन रोड पर ही है और जहा पास बनता है, मैंने कहा ठीक है और मैं उसकी कार में बैठ गया और उसने मुझे Sub Divisional ऑफिस पर छोड़ दिया जहा से पंगसु तक जाने का पास बनता है,मैने उसे अलविदा कहा और परमिट ऑफिस की तरफ बढ़ चला
घडी में लगभग 2 बज रहे थे,और मैं जब अंदर पंहुचा तभी वो लोग ऑफिस को लॉक कर रहे थे मैने उनसे पूछा की आप लोग कहा जा रहे हैं मुझे परमिट बनवाना हैं, तो उन्होंने कहा की अब लंच हो गया है और अब हम एक घंटे बाद 3 बजे आयेंगे कह कर वो लोग चले गए
अब ऑफिस में कोई नहीं थी मैने बहार रखे लकड़ी के बेंच पर अपना बैग रखा और आराम करने लगा, बहार वो स्कूल के बच्चे अभी भी घूम रहे थे, अब मुझे एक बात पता लग गई थी की मैं आज पंगसु पास नहीं जा सकता, खेर कोई बात नहीं, मैं इस गांव तक चला आया था वो भी बिना पैसे दिए ये भी मेरे लिए कम ना था, मैं अपना बैग अंदर ही रख कर बाहर रोड पे घूमने लगा
लगभग एक घंटे बाद वो दो लड़किया आई और लड़का जो उनका बॉस था घर पे ही रह गया, फिर से उन लड़कियों ने ऑफिस खोला, शायद यहा कभी-कभार ही कोई टूरिस्ट आता है, उन दो लड़कियों में से एक बहुत ही cute थी, मैं उसकी तरफ खींच रहा था, मैने सोचा चलते है उससे बात करते है और मैं ऑफिस के अंदर गया और उससे पंगसु पास के बारे में बात करने लगा, पंगसु पास तो एक बहाना था दरअसल मुझे उसके साथ सिर्फ बात करना था, लगभग एक घंटे तक मैं उनसे बात करता रहा फिर उन्होंने मुझे बताया की आपको इधर से जाने के लिए कोई ऑटो नहीं मिलेगा, यहा से जल्दी निकलना ही बेहतर है,
अब शाम ढलने लगी थी, वैसे भी नार्थ ईस्ट में जल्दी शाम हो जाती है और ठण्ड की वजह से थोड़ी और जल्दी शाम होने लगी थी, घडी में अब लगभग 4 बज गए थे, और यहा से जाने के लिए कोई पब्लिक ट्रांसपोर्ट भी नहीं था अब तो बस किसी की गाड़ी का ही सहारा था मैने मुनमुन और उसकी दोस्त को अलविदा कहा और मेन रोड पर आ गया और पैदल ही चलने लगा तभी एक बाइकर को मैने आता देखा, मुझे लगा की अब मैं शायद निकल जाऊंगा यहा से, मैंने उस बाइक वाले को हाथ दिया और उसने बाइक रोक दिया, मैने उससे थोड़ा आगे चलने के लिए कहा और उसने कहा की वो वह गांव के बाहर तक जायेगा, मैने कहा ठीक है, गांव के बाहर ही सही! और उसने मुझे गांव के बाहर छोड़ दिया, अब मैं फिर पैदल चलना शुरु कर देता हू और एक बड़े से मैदान के पास पहुँचता हू वहा कुछ लड़के फुटबॉल खेल रहे होते हैं जो बाये तरफ होता हैं और मेरे दाहिने तरफ एक कार खड़ी होती हैं, और वहा दो लड़के दो लड़कियों से कुछ बाटे kar rhe थे, शायद वो उन्हें छोड़ने आये थे, मेरे थोड़ा आगे जाते ही उन्होंने अपनी कार मोड़ा और पीछे की तरफ से आने लगे, मैने उन्हें रुकने का इशारा किय और उन्होंने अपनी गाड़ी रोक दिया, मैने उनसे कहा की मुझे थोड़ा आगे छोड़ देंगे तो उन्होंने कहा की कहा तक मैने कहा की Jairampur तक अगर छोड़ सको तो, फिर उन्होंने कहा की 100₹ लगेगा, मैने उससे कहा की मेरे पास एक rupee भी नहीं है अगर छोड़ना है तो छोड़ दो,और वो अपनी कार के साथ आगे बढ़ गए और मैं फिर पैदल चलने लगा और चलता-चलता गांव के सबसे आखरी में पंहुचा जहा रोड पे आखरी बोर्ड लगा था और इसके बाद जंगल शुरु हो रहा था, मैने अपना बैग रोड के किनारे रखा और कैमरे को बैग के अंदर, अब मेरे पास दूसरा कोई रास्ता नहीं था अगर मुझे किसी गाड़ी में लिफ्ट नहीं मिलती तो मुझे आज रात इसी गांव में बिताना पड़ेगा, मैं वहा लगभग 20 मिनट तक इतंजार करता रहा और मुझे पहले ही लोग बता चुके होते है की अब यहा से कोई गाड़ी नहीं जाएगी क्योकि रात में यहा कोई नहीं चलता, पर मेरा दिल कहता है की मैं यहा से निकल जाऊंगा क्योकि मैंने इससे भी ज्यादा बुरा वक़्त झेला है, ऐसे वक़्त में धैर्य को होना बहुत जरुरी है
लगभग 20 मिनट के इंतजार के बाद मुझे एक TATA पिकअप (छोटा ट्रक) आते हुए दिखा, मेरे पास यही मौका था, मैं सड़क के किनारे से थोड़ा अंदर आ कर उससे रुकना का इशारा किया और उसने पास आते हो रोक दिया, वो एक चाय पत्ती ले जाना वाला ट्रक था जिसे वहा पत्ता ट्रक कहते है, उसके पीछे 5,6 वर्कर भी थे, मैंने अपना बैग उठाया और ट्रक के पीछे डाला और पीछे खड़ा हो गया, अब अँधेरा छाने लगा था और मुझे लग रहा था की मैं आज रात स्टेशन पर पहुंच जाऊंगा, पर मुसीबत अभी काम नहीं थी, ट्रक फिर से उन पहाड़ी रास्तो से होता हुआ चलने लगा, घुमावदार रास्ते और दूर तक दिखती पहाड़िया, थोड़ी देर बाद जब ट्रक पहाड़ियों से निचे उत्तरा तो एक मैदान में जा कर रुका, जहा दो-तीन घर बने हुए थे उसने वहा 2 लेबरों को उतरा और फिर आगे बढ़ चला और जयरामपुर यानी मार्केट से थोड़ा पहले उत्तार दिया क्योकि उसे दूसरी तरफ जाना था,यहा काफी अँधेरा था और अब मैं अँधेरे में ही पैदल चलने लगा था, मुझे यहा अपना समय बर्बाद नहीं करना था, अब यहा लगभग गाड़िया चलना बंद हो गई थी और मुझे जल्दी से जल्दी मेन हाईवे Jagon पहुंचना था, मुझे उम्मीद थी की वहा से आगे गाड़िया चल रही होंगी,मैं पैदल चलता रहा थोड़ी देर में पीछे से एक बाइक आते हुए देखा और मैंने उसे रुकने का इशारा किया और वो रुक गया मैंने उससे थोड़ा आगे तक छोड़ने के लिए कहा तो उसने कहा की वो बस मार्केट तक ही जायेगा तो मैंने कहा ठीक है वहा तक ही छोड़ दो और उसने मुझे Jairampur मार्केट तक छोड़ दिया अब एक बार फिर से मुझे लिफ्ट की जरूरत थी, मैं पैदल ही चलने लगा पर इस मार्केट को पार करते ही घने जंगल थे, मैं पैदल ही आगे नहीं जा सकता था मैंने मार्केट पार कर के एक जगह खड़ा हो गया जहा मुझे लगा की अगर कोई गाड़ी जाएगी तो यही से हो कर जाएगी पर अब वहा से अब कोई गाड़ी नहीं जा रही थी सब कुछ शांत था, एक दो गाड़िया जो जा भी रही थी उनमे लोकल लोग थे जो आस पास अपने घर जा रहे थे, अगली जगह Jagon यहा से महज 12km था पर यहा से जाने के लिए कोई गाड़ी नहीं थी
मुझे एक कार आते हुई दिखी, मैंने उस कार को रुकने का इशारा किया और वो कार पास आते ही रुक गई, उसमे एक आदमी जिसकी उम्र लगभग 45 थी और साथ में एक औरत जो उनकी पत्नी थी, मैंने उनसे अगले रिहायसी इलाके Jagon तक छोड़ने के लिए कहा तो उन्होंने कहा की 200₹ लगेगा, मैं थोड़ा हसा और मैने कहा आप मुझे आमीर टूरिस्ट समझ रहे है, 200 में तो मैं होटल ले लूंगा और फिर वो चला गया, जहा मैं खड़ा था उसके सामने ही पुलिस स्टेशन था मैं वहा गया और पता किया की क्या कोई पुलिस की गाड़ी उधर की तरफ जाएगी, तो उस पुलिस वाले ने बताया की वो लोकल नहीं है, शायद वो सेंट्रल गवर्मेन्ट से थे उसने मुझे बताया की आगे अरुणाचल का चेक पोस्ट है उसने कहना और वो किसी गाड़ी में बैठा देगा, जो की वहा से 200 मीटर था और मोड़ की वजह से दिख नहीं रहा था, मैं उस चेक पोस्ट की तरफ बढ़ा शायद वहा से कोई गाड़ी मिल जाये, और मैं थोड़ी ही देर में उस चेक पोस्ट पे पहुंच गया, ये असम और अरुणाचल का बॉर्डर है
मैने वहा दो पुलिस वालो को देखा, मैं उनके पास गया और उनसे अपनी बात बताया, मैने उन्हें बताया की मैं एक ट्रैवेलर हू और अरणाचल को एक्स्प्लोर कर रहा हू, मुझे स्टेशन जाना है और कोई गाड़ी नहीं है और किसी गाड़ी में छोड़ने के लिए कहा, वो दोनों पुलिस नौजवान थे मेरी उम्र से थोड़ा ज्यादा, और वो दोनों अरुणाचल के ही थे, उन्होंने कहा अच्छा ठीक है और मुझे कुर्सी दिया बैठने के लिए और फिर चाय और पकोड़ी मंगाया, हम चाय पीते रहे और कई सारी जगहों की बातें करते रहे, उसने मुझे arunachal के कई और खूबसूरत जगहों के बारे में बताया, उसने मुझसे कहा की अगर कोई गाड़ी नहीं मिलती है तो तुम यहा सो सकते हो, अंदर दो बिस्तर है और एक समय पर एक आदमी ही सोता है, और मैने कहा ठीक है, अब मेरा सोने का इंतजाम हो गया था,पर अगर कोई गाड़ी मिल जाती तो बेहतर होता और वहा वाक़ई में कोई गाड़ी नहीं थी,
लगभग आधे घंटे इंतजार के बाद तीन बाइकर आये जो Jagon की तरफ जा रहे थे, जिधर मुझे जाना था और पुलिस वाला उन्हें जनता था, पुलिस वाले ने उनसे कहा और वो तैयार हो गए मुझे jagon तक छोड़ने के लिए, मैं उनकी बाइक पर बैठा और हम jagon की तरफ हो लिए, अब फिर से घने जंगल शुरु हो गए और बिलकुल अँधेरी रात और मैं जिस बाइक पर बैठा था उसकी लाइट ठीक नहीं थी तो एक बाइकर आगे चल रहा था और एक पीछे, हलाकि रोड काफी अच्छा था तो मुझे ज्यादा वक़्त नहीं लगा और मैं जल्द ही jagon के तिराहे पर खड़ा था,
यहा मार्केट खुला था और अब मुझे लगा की अब तो मैं यहा से कभी भी निकल सकता हू क्योकि वहा से ट्रक भी जा रहे थे, अब घडी में लगभग 7 बज रहे थे और यहा से Ledo रेलवे स्टेशन 20km था और यहा से स्टेशन के लिए ऑटो जाते रहते हैं, मैं एक बेकरी की दुकान पर गया और वहा से एक केक खाया और उससे ऑटो के बारे में पूछा तो उसने बताया की यहा 8 बजे के बाद कोई गाड़ी नहीं चलती, तो मैं केक खा कर ऑटो स्टैंड की तरफ बढ़ा और स्टेशन जाने वाले ऑटो के बारे में पता किया, तो मुझे पता चला की अब यहा से स्टेशन जाने के लिए कोई ऑटो नहीं हैं, अब मैं फिर से एक bar सड़क के किनारे खड़ा हो गया और गाड़ियों का इंतजार करने लगा, वहा से ट्रक पास कर रहे थे पर रुक नहीं रहे थे मेरे लिए यहा लिफ्ट लेना थोड़ा मुश्किल हो रहा था मैं मार्केट से थोड़ा आगे जा कर लिफ्ट की कोशिश करने लगा पर बात नहीं बनी, मैं फिर ऑटो स्टैंड पर आ गया, वहा एक आखरी ऑटो अपनी ऑटो स्टार्ट कर के खड़ा था, उसने मुझे देखते ही बुलाया और उसने मुझसे पूछा आप कहा जायेंगे और मैने बताया की मुझे स्टेशन पर जाना हैं, फिर उसने कहा की वो स्टेशन तक नहीं जायेगा वो बस यहा से 10km आगे तक जायेगा और स्टेशन वहा से 20km था, मैंने कहा चलो ठीक है,और मैं उसकी ऑटो मे हो लिया और स्टेशन की तरफ चल पड़ा और सोचा चलो आगे का आगे देखेंगे
उसके ऑटो मे पहले से ही तीन लड़किया बैठी थी जो शायद एक ही घर से थी या फिर फ्रेंड थी, मैं उनसे बातें करने लगा और हम नार्थ और नार्थ ईस्ट india के बारे में बात कर रहे थे, थोड़ी देर बाद उन लड़कियों का घर आ गया, मैने उन्हें अलविदा कहा और फिर ऑटो आगे बढ़ गया और और चलने के बाद ऑटो आपने आखरी स्टॉप पर रुका, बिच मे एक और लड़का हमारी ऑटो मे चढ़ा था और उसे भी स्टेशन जाना था, अब हमारी ऑटो जहा रुकी वहा पहले से ही तीन लोग ऑटो का इंतजार कर रहे थे जिन्हे भी स्टेशन जाना था, वो तीनो भी ऑटो के पास आये और स्टेशन तक छोड़ने की बात करने लगे, अब ऑटो वाले के पास पर्याप्त लोग थे तो ऑटो वाले ने अपना मूड बदला और हम सब को स्टेशन तक छोड़ने के लिए राजी हो गया, यहा तक आने का 10₹ लगा था और यहा से स्टेशन तक का उसने 10₹ और लिया जो सही किराया था, और थोड़ी ही देर मे मैं स्टेशन पर था
और स्टेशन पहुंच गया तो समझो घर पहुंच गया, थोड़ी देर बढ़ एक डेमू ट्रैन थी जिससे मैं Tinsukiya निकल गया

Day10

कल मैं Itanagar से आया था और और अभी मैं Harmuti रेलवे स्टेशन पर हू, आज मेरे प्लान Dibrugadh की तरफ जाने का है
यहा से 8:40 am पर एक ट्रैन है जो Murkongselek तक जाती हैं,जो Assam का आखरी स्टेशन है, ट्रैन के आने में अभी लगभग 1 घंटा हैं और स्टेशन पर भी ज्यादा भीड़ नहीं हैं, मैंने सोचा क्यों न नास्ता कर लिया जाये, और वहा स्टेशन पर एक दुकान से पूरी और सब्जी का नास्ता किया और फिर थोड़ी देर वही वेटिंग रूम में बैठा रहा
मेरा North East को लेकर experience रहा हैं की यहां के रेलवे स्टेशन बहुत साफ-सुथरे होते हैं और ट्रेनों में भीड़ कम ( main route की ट्रेनों को छोड़ कर )
थोड़ी देर बाद मेरी ट्रैन आई और मैं ट्रैन में हो लिया, उम्मीद के मुताबित ट्रैन में भीड़ कम थी, सीटों पर एका-दुका ही लोग बैठे थे मैंने भी अपना बैग ऊपर के सीट पर रखा और एक खली सीट पर जा कर बैठ गया, थोड़ी देर बाद ट्रैन चली और फिर वही हरियाली वही खूसूरत नजारे शुरु हो गए
मैंने पुरे भारत में इतना सुन्दर नजारा कही नहीं देखा, ट्रैन के एक तरफ अरुणाचल के बड़े पहाड़ और दूसरी तरफ असम के चाय के मैदान और ट्रैन इन दोनों राज्यों की सीमा पर चल रही है, और ऐसा कोई दो चार या दस कि.मि. तक नहीं था, ये मिलो तक था, जब मैं देकारगांव स्टेशन पर था तो वहा मुझे तट TTE office में एक ऑफिसर ने बताया था की सिलपाथर रेलवे स्टेशन से ब्रह्मपुत्र को पार किया जा सकता हैं और वहा से डिब्रूगढ़ का रास्ता आसान है
मेरी ट्रैन लगभग दोपहर के 1 बजे सिलपाथर स्टेशन पर पहुंच गई, ट्रैन से ज्यादा तर लोग यही उतर गए थे, जैसे यही आखरी स्टेशन हो, मैं स्टेशन से बहार निकला तो वह बहुत सरे Auto का जमावड़ा था, वहा बैटरी ऑटो से लेकर बड़े और छोटे ऑटो, sumo सभी गाड़िया लगी हुई थी,और सभी Assami में अपने अपने जगह चिल्ला रहे थे, उस में से एक घाट-घाट चिल्ला रहा था मैं उस ऑटो में जाकर बैठ गया और थोड़ी देर बाद वो वहा से चल दिया
थोड़ी देर तक गांव था और इसके बाद खाली मैदानी इलाका शुरु हो गया रोड के दोनों तरफ सिर्फ खेत थे सड़को पे थोड़ी बहुत ही गाड़िया थी, पहले सड़क अच्छी थी पर धीरे धीरे खराब होने लगी, शायद अब ब्रह्मपुत्र नदी पास आने लगी थी, मैने सड़क के किनारे रेल लाइन देखा, मैने ऑटो वाले से पूछा तो उसने बताया की पहले ट्रैन यहा नदी तक आती थी, पर एक बार flood की वजह से रेल लाइन टूट गई थी, मैने वहा रेल लाइन पे लोगो को काम करते हुए देखा,और वहा ब्रह्मपुत्र के ऊपर एक Rail-Road Bridge बन रहा था जिससे ट्रैन और गाड़िया एक साथ ब्रह्मपुत्र के दूसरी तरफ आ जा सकेंगी
ऑटो वाले ने मुझे ब्रिज के निचे छोड़ा और नाव वह से थोड़ी दूर लगी थी, शायद ब्रह्पुत्र का पानी कम हो गया था,और रास्ता धूल से पटा था, मैंने वहा Ferry से आर्मी वालो को अपना सामान उतारते देखा, यहा नाव ही लाइफ लाइन है, मैं थोड़ा और आगे बढ़ा और और वह पंहुचा जहा पब्लिक बोट लगी थी, जो अब से आधे घंटे के बाद यहा से जाने वाली थी, मैं बोट के अंदर जा कर बोट के अगले हिस्से की सीट पर बैठ गया जो बाकी की सीटों से थोड़ा ऊपर था,मेरे बगल में थोड़ी सी और जगह थी जहा एक ही फैमिली की एक औरत और दो लड़किया थी जो अरुणाचल के Paighat से थी और मेडिकल reason से Dibrugadh जा रही थी, मेरे सामने एक बुजुर्ग महिला थी और ऐसे ही कई सारे लोग बैठे थे, बोट पे कई सारी मोटर-साइकिल और दो कार भी थी जिसमे से एक मेरे बगल में बैठे फैमिली की थी, थोड़ी देर मैं बोट शुरु हुई और हम चल दिए नदी के उस पार
नाव के चलने के साथ ही मेरे सामने बैठी बुजुर्ग महिला असामी में कुछ गीत गुनगुनाने लगी और मेरे बगल में बैठा परिवार जो Pasighat से है आपस में बात करने लगे, ऐसे ही दूसरे लोग एक-दूसरे से बात करने लगे,कुछ लोग अपने मोबाइल में कुछ करने लगे और मैं नाव में लगी खिड़की खोल कर बहार का नजारा देखने लगा, सूरज सर के ऊपर था पर ठण्ड की वजह ये ऐसा लग रहा था की जैसे अब डूबने का मन बना रहा हो, वैसे भी नार्थ ईस्ट में सूरज जल्दी डूबता और जल्दी उगता है, इसी लिए अरुणाचल को "Land of Rising Sun " भी कहते हैं
अभी भी मेरी खिड़की खुली हैं और मैं बहार ही देख रहा हु, सूरज की किरणे ब्रह्मपुत्र के पानी पे गिर रही है जिससे उसका रंग पीला और लाल दिख रहा हैं और बहुत ही खूबसूरत लग रहा हैं, अब नाव घाट को छोड़ कर बिच में आ गई हैं
मैंने थोड़ी देर बाद खिड़की बंद किया और और सामने बैठी महिला की तरफ देखा वो अभी भी आँख बंद करके धीरे-धीरे आसामी गीत गए रही हैं, मैं उनके गीत सुनने लगा और वो मुझे अच्छे लग रहे थे, फिर थोड़ी देर बाद अपने बगल वाली फॅमिली जो Pasighat से है बात करने लगा, मैने उन्हें बताया की आज से 2 साल पहले जब में पहली बार अरुणाचल आया था तो मैं डरा हुआ था,मुझे लगता था यहां Tribe मुझे डंडे में लगा कर आग पर सेक देंगे और वो सब हसने लगी,फिर उसने अपनी दिल्ली की कहानी बताया की कैसे लोग उसे Chinies समझ रहे थे और फिर मैं हसने लगा, मेने उसे बताया की लोग face की वजह से कंफ्यूज हो जाते है और अब लोग बदल भी रहे है, कुछ सालो पहले मैं खुद नार्थ ईस्ट के लोगो को नहीं जनता था, और शायद इसकी सबसे बड़ी वजह है connectivity , हम एक दूसरे को जानते नहीं है, फिर मैं उनसे Pasighat और Tezu की जानकारी लेने लगा
लगभग एक घंटे के बाद नदी का दूसरा किनारा आया और सब उतरने लगे अब मुझे तलाश थी किसी गाड़ी पे लिफ्ट की, बोट से ज्यादा तर लोग Dibrugadh जाने वाले थे तो मुझे ज्यादा दिकत नहीं हुई और एक बाइक वाले ने मुझे लिफ्ट दे दिया और अब हम Dibrugadh की तरफ चल दिए
पहले हम नदी में बने बालू के रोड पर ही कुछ दूर तक चलते रहे और फिर पक्की रोड शुरु हुई और फिर चाय के खेत, अब हम चाय के खेतो से हो कर निकल रहे थे दोनों तरफ दूर तक सिर्फ हरा मैदान दिख रहा था और बहुत खूबसूरत लग रहा था, उस बाइक वाले ने मुझे Dibrugah Town स्टेशन पर छोड़ दिया, मैं डिब्रूगढ़ के बाजार में थोड़ी देर तक घूमता रहा और वहा के स्ट्रीट फ़ूड को टेस्ट करता रहा फिर मैं रेलवे स्टेशन गया और Tinsukiya रेलवे स्टेशन के लिए ट्रैन पता किया और वो लगभग 1:30 घंटे बाद थी, मैंने वहा टिकट लिया और जा कर स्टेशन पर अपनी गाड़ी का इंतजार करने लगा, शायद मुझे आज का ठिकाना पता चल गया था, अब लगभग शाम ढल चली थी अँधेरा छाने लगा था वैसे भी नार्थ ईस्ट में रात जल्दी होता है, फिर एक डेमो ट्रैन आई और मैं उसमे हो लिया
आज से कुछ महीनो पहले इधर आने को मैं जोखिम वाला काम मानता था, मुझे यहा आना बहुत बड़ी बात लगती थी,मुझे ऐसा लगता था की यहा Man vs Wild वाला Bear Grylls ही आ सकता है, पर अब मुझे वो बात समझ में आने लगी थी की इंसान का डर ही सबसे बड़ा डर होता है और Tinsukiya तो एक सिटी है जैसे Guwahati,Dimapur या Itanagar हैं
थोड़ी देर बाद तिनसुकिया रेलवे स्टेशन आया और ये मेरी उम्मीद से ज्यादा बड़ा, अच्छा और साफ-सुथरा रेलवे स्टेशन था
अब रात होने लगी हैं और मैं अपना बैग रख कर sleeping bag लगाने लगा हु और दिल में बस एक ही बात चल रही हैं, वो लड़का जो कभी घर से बहार नहीं निकलता था आज India के आखरी छोर पर आ गया हैं

Day9

अब तक मैंने Arunachal के Tawang जोन को एक्स्प्लोर किया था जिसमे Tawang,Tenga Valley,Bomdila,Rupa और Bhalukpong था, और मैं पहले ही Ziro Valley जा चुका हू, पर कभी Arunachal की राजधानी Itanagar नहीं जा सका था
आज सुबह 5 बजे ही एक पैसेंजर ट्रैन हैं
Dekargaon स्टेशन से होकर Assam के आखिरी छोर Murkongselek तक जाती हैं और वहा से अरुणाचल का Paighat शुरु होता हैं, मैंने मैप में Itanagar जाने का रास्ता देखा और वो आगे कुछ घंटो के सफर के बाद Gohpur रेलवे स्टेशन से था, मैं ईटानगर जाना तो चाहता था और साथ ही Paighat भी, पर पहले कहा जाऊ ये decied नहीं कर पा रहा था और अब मैं ट्रैन मैं बैठा हू, और ट्रैन चल रही हैं, मैंने खिड़की से एक तरफ झक कर देखा तो अरुणाचल के ऊंचे और हरे पहाड़ और दूसरे तरफ असम का मैदान और ट्रैन इन् दोनों स्टेट के बॉर्डर पर चल रही हैं ये नजारा इतना खूबसूरत हैं की अब मैं इन्ही नजरो में गुम हो जाता हू और इन पहाड़ों को एक टक देखता रहता हू, कभी जा कर गेट पर खड़ा हो जाता हू फिर कभी सीट पर आ कर बैठ जाता हू
इस खूबसूरत नजारे को देखने के बाद मैने मूड बनाया की मैं ईटानगर जाऊँगा और मैंने ट्रैन को Gohpur रेलवे स्टेशन पर छोड़ दिया
ये एक बहुत ही छोटा स्टेशन था जहा सिर्फ पैसेंजर ट्रैन ही रूकती हैं, यहाँ बहुत कम लोग ही चढ़ने और उतरने वाले थे, ट्रैन के जाते ही सन्नाटा सा पसर गया, मैं स्टेशन से बाहर निकला और और बाहर के एक छोटे से होटल में नाश्ता किया और फिर स्टेशन पर आ गया, क्योंकि मुझे हाईवे पर जाना था जिसका सबसे नज़दीक रास्ता रेलवे लाइन ही थी, मैं रेलवे स्टेशन से पैदल ही चल कर हाईवे पर आ गया जो लगभग 1 कि.मि. था, और यहा से थोड़ी ही दूर पे अरुणाचल का बॉर्डर था, अब मैं पैदल ही अरुणाचल कि तरफ चलने लगा कि मुझे एक गाड़ी में लिफ्ट मिल गई और उसने मुझे असम और अरुणाचल के बॉर्डर पे छोड़ दिया
आज का दिन मेरे लिए ज्यादा मुश्किल भरा नहीं था क्योकि मुझे आज शाम का ठिकाना पता था मुझे पता था कि मुझे ईटानगर से ट्रैन मिल जाएगी और आगे पास के बड़े स्टेशन पर मैं सो सकता हू
अब मैं अरुणाचल बॉर्डर पर बने गेट के पास हू और और वहा से अरुणाचल का NH415 हाईवे शुरु हो जाता हैं ,मैं वहा पास के ढाबे में कुछ खाने के लिए जाता हू पर वहा कुछ बना नहीं होता है, तो मैने वहा की बनी एक लोकल मिठाई खाया और फिर खूबसूरत अरुणाचल के Hollongi-Itanagar हाईवे पर निकल पड़ा,
ये हाईवे भी अपने आप में एक घूमने कि जगह हैं, मैं पैदल ही अरुणाचल के हाईवे पर चल देता हू, हाईवे के दोनों तरफ मैदान और खेत हैं और सामने अरुणाचल के पहाड़, ये सब कुछ बहुत ही खूबसूरत था, और मै पैदल ही चलता रहता हू जब तक पहाड़ शुरु नहीं हो जाते फिर मै एक जगह पहुँचता हू जहा Itaganar का बोर्ड लगा था और वहा कोई नहीं था रोड के दोनों तरफ बड़ी-बड़ी घासे दूर तक फैली थी, कुछ wilderness की तरह, मुझे वो जगह बहुत अच्छी लगी और मैंने वहा घास पर अपना बैग रखा और थोड़ी देर वहा बैठा रहा
अब पूरी तरह से दोपहर हो गई थी, और मैं सड़क किनारे गाड़ी का इंतजार करने लगा, थोड़ी देर में एक गाड़ी आई और उसने मुझे Itanagar तक लिफ्ट दे दिया, मैं कभी-कभी सोचता हू की अगर लोग मुझे लिफ्ट न देते तो मेरा क्या होता,शायद मैं कभी इतना घूम ही नहीं पाता
अब मैं hollongi-Itanagar के खूबसूरत रास्ते पर हू, दोनों तरफ हरे और किनारे से एक बराबर कटे पहाड़ थे,और पहाड़ो में चौड़ी सड़क और कही कही दूर का नीला पहाड़ दिख रहा था, थोड़ी देर की ड्राइविंग के बाद मैं Itanagar सिटी में पहुंच गया
मुझे अरुणाचल के लोग हमेसा से ही अच्छे लगते हैं और अब मैं उनके बीच था, मैं अब वहा के मर्केट में घूमने लगा, और वहा लगभग में दो घंटे तक घूमता रहा, वहा मैंने एक traditional shop देखा जहा tribal कपडे और और कई सारी traditional चीजे बिक रही थी ऐसे ही एक औरत वहा सब्जी और साथ ही छोटे किट-पतंगे रखी थी जिसकी वहा चटनी बनाते हैं, आगे ऐसे ही कई दुकाने थी, थोड़ा आगे जाने पे मैंने स्पेशल डे मार्किट देखा जहा उस दिन कपड़ो का बाजार लगा था और बहुत सारे लोग कपडे खरीद रहे थे ज्याद तर लड़किया ही थी
अब अँधेरा होने लगा था और मुझे नाहरलागुन रेलवे स्टेशन तक जाना था तो मैंने वहा एक नाहरलागुन जाने वाली गाड़ी देखा और उसमे हो लिया और उसने मुझे नाहरलागुन मर्केट में छोड़ दिया जबकि मुझे स्टेशन जाना था, जो वहा से 7 कि.मि था, मैंने ट्रैन का टाइमिंग देखा तो ट्रैन के आने में 3 घंटे थे, मेरे पास बहुत वक़्त था तो मैंने पैदल ही चलना शुरु कर दिया और लगभग 2 कि.मि चलने के बाद एक तिराहा आया जहा से स्टेशन का सीधा रास्ता जाता था
मैने वहा के स्ट्रीट फ़ूड को टेस्ट करने का सोचा, आलू चाप, अंडा चाप और मुर्गे कि टांग जिसमे गोस्त नहीं होता उसका पकोड़ा, और मैने तीनो हो टेस्ट किया और फिर थोड़ी देर वही घूमता रहा
वहा पास में एक दुकान के सामने कुछ लड़के और लड़किया पते खेल रहे थे जैसे कोई परिवार खेल रहा हो, यहाँ पते खेलते लोग अक्सर मिल जाते हैं, शायद ये उनका सबसे पसंदीदा खेल हैं, अभी भी ट्रैन के जाने में 2 घंटे बचे हैं, स्टेशन कोई बहुत ज्यादा दूर नहीं है, मैंने वहा पास में कुछ लड़को को देखा जो अपनी बाइक स्टेशन कि तरफ कर के खड़े थे, मैंने उनसे पूछा स्टेशन चलोगे और उन्होंने कहा हा चलेंगे तो मैंने कहा कि मुझे भी छोड़ देना और उन्होंने कहा ठीक हैं
Arunachal के लोगो को लेकर मेरा experience अच्छा रहा हैं, अक्सर लोग मदद कर दिया करते हैं और इसी वजह से लगभग मैं फ्री मैं घूम रहा हू,
थोड़ी देर में सबने बाइक स्टार्ट किया और हम स्टेशन कि तरफ चल दिए, इस बीच हमने काफी बात-चित किया और हम दोस्त बन गए, थोड़ी हम स्टेशन पहुंचे और एक दूसरे को अलविदा कहा और हम दोनों अपने घर की तरफ चल दिए,
क्योकि आज स्टेशन ही मेरा घर था............

Day8 

जब मैं Arunachal से आ रहा था तो मैंने रेलवे लाइन को देखा था जो रोड के साथ ही था और वो मुझे बहुत खूबसूरत लगा था तो तभी मैंने सोचा था की जब में तवांग से लौटूंगा तो ट्रैन से जाऊंगा पर मैं नहीं जा पाया था, मेरे मन में अभी भी कसर थी उस ट्रैन रूट को देखने की और आज मैं तैयार हु Bhalukpong स्टेशन तक जाने के लिए यह ट्रैन Dekargaon स्टेशन से सुबह 11 बजे चलती है और भालुकपोंग 1 बजे पहुंच जाती हैं, लगभग दो घंटे की यात्रा हैं,
मैंने कल ही अपने कैमरे का डाटा अपने हार्ड डिस्क में डलवा लिया था, कैमरे का डाटा ट्रांसफर करना मेरे लिए एक चुनौती होती हैं पर अब मैं उस चुनौती से निपट चूका हू और अब अब मैं जो चाहे रिकॉर्ड कर सकता हू
मुझे अब जल्दी से तैयार होना है क्योकि ट्रैन किसी का इंतजार नहीं करती, आज सुबह ही मैंने कैमरे की बैटरी को चार्ज में लगा दिया था, पावर बैंक तो रात से ही चार्ज में लगा था, जो कपडे मैंने कल धुले थे वो भी अब सुख चुके हैं, अब मैं पूरी तरह से तैयार हु अपने नए सफर के लिए
ट्रैन लगभग 10 बजे प्लेटफार्म पर आ गई और अभी मुझे अपना सामान पैक करना था, थोडी ही देर मे मैंने अपना सारा सामान पैक कर लिया और रुम मे बैठा रहा क्योकि अभी वक़्त था और ट्रैन मे भी जा कर बैठना ही था
अब जब लगभग 20 मिनट बचे थे तो मैंने अपना रूम लॉक किया और सीढ़ियों से निचे उतर कर टी.टी रूम में गया वहा टी.टी को मैने चाभी दिया और टिकट काउंटर पर गया टिकट लेने के लिए और टिकट महज 15₹ का था, मैने टिकट लिया और ट्रैन में जाकर बैठ गया, ट्रैन लगभग पूरी खली थी, एक सीट पे एक आदमी बैठता तो भी सीट ज्यादा हो जाती, इस ट्रैन से अक्सर कम ही लोग जाते है और वजह है इसकी टाइमिंग, ये लगभग दोपहर मे जाती है और एक घंटे बाद चली आती है और इस ट्रैक पर यह एक मात्र ट्रैन है।
थोड़ी देर बाद घडी मे 11 बजा और साथ मे ट्रैन का हॉर्न भी और ट्रैन ने पहले धीरे-धीरे और फिर रफ़्तार भरना शुरु किया और इसी के साथ ट्रैन चल पड़ी थी एक सुनहरे सफर की तरफ.....
Dekargaon के बाद का बड़ा स्टेशन Rangapara North था वहा तक सब कुछ आम था मेरे लिए हाला की ये भी बहुत खूबसूरत है पर मै यहा से इतनी बार गया हू की अब यह मेरे घर सा लगता है, मुझे इंतजार था अगले स्टेशन का जहा से मेरी असली यात्रा शुरु होनी थी
थोड़ी देर बाद ट्रैन अगले स्टेशन पर पहुंच गई और फिर वह से चली Bhalukpong के लिए अब सब छोटे स्टेशन थे और इस ट्रैन को overtake करने वाला कोई नहीं
ट्रैन के स्टेशन छोड़ते ही चाय के खेत दिखने लगे, दोनों तरफ चाय के हरे-भरे खेत, जहा तक देखो सिर्फ चाय ही चाय दिख रही थी, एक बराबर कटे होने के कारण वो एक हरे मैदान की तरह लग रहा था, जहा थोड़ी उची मिटी होती थी वहा वह मैदान उठता हुआ लगता था और बीच-बीच मे छोटी नहरे बनी थी पानी निकलने के लिए,और ऐसा लग रहा था की इन चाय के खेतो ने मानो दुनिया की सारी हरियाली अपने अंदर ही समेट रखी हो
थोड़ी देर बाद ट्रैन अगले स्टेशन Balipara पहुंची और इसके बाद ट्रैन उस सिंगल route की तरफ मुड़ी जिसकी आखरी मंजिल भालुकपोंग स्टेशन था और अब तो मानो प्रकृति ने अपनी खूबसूरती मेरे सामने ला कर रख दिया हो, जहा तक देखो खूबसूरत नजारा था, नदियों मे बहता साफ़ पानी,खेतो के बीच से निकलती ट्रैन, बीच-बीच में छोटे स्टेशन जहा चढ़ने वाला लगभग कोई नहीं और सामने अरुणाचल के बड़े पहाड़,ये सब किसी सपने से कम नहीं था
और ये सब कुछ ऐसा ही रहा भालुकपोंग स्टेशन तक, दोपहर का वक़्त था पर वह पहाड़ो की वजह से ठंडी- ठंडी हवा बह रही थी, मेरे पास लगभग एक घंटे का वक़्त था इस खूबसूरत जगह को देखने का, मैंने स्टेशन और इसके आस-पास के कई फोटो खींचा और इसके बाद एक बैंच पे बैठ कर पहाड़ो को देखता रहा
जब घडी में 2 बजे तब ट्रैन ने एक बार फिर हॉर्न दिया और ट्रैन फिर Dekargaon की तरफ चल दी, इस बार मुझे बस Rangapara North तक जाना था जो main route का स्टेशन है, जहा से मुझे आगे के लिए ट्रैन मिल सकती थी
आते वक़्त मैने अपने पीछे वाली सीट पर दो खूबसूरत लड़कियों को देखा, वैसे भी पूरा कोच खाली था सोचा चलो इनसे बात करे, बस क्या था पीछे पहुंच गए और जैसे लगा की उन्हें भी मेरा इंतजार था और फिर क्या एक दूसरे के बारे में जाना और फिर थोड़ी देर तक उनसे बात करता रहा फिर उनका स्टेशन आ गया और वो उतर गई और मैं बंजारा मुसाफिर चलता ही रहा , मुझ जैसे आवारागर्द मुसाफिर को और क्या चाहिए थोड़ा सा प्यार
फिर मेरी ट्रैन रंगपारा नार्थ स्टेशन पर पहुंची और आज मैंने यही यही रुकने का सोचा वैसे भी शाम हो गई थी और और आगे जाने का मेरा दिल भी नहीं था

Day7

After a adventures journey of Tawang Arunachl Pradesh, It's time to relax so i deiced to stay today at Railway dormitory of Dekargaon Tezpur Assam and also this place was so quiet and also there is no train after 5pm till morning and it is out of main route of railway so after all it may be weird for someone but for me It is a ideal destination, best view, no crowed, Cheap rate and without any restriction 

Day6

At very morning i moved from #Dirang_Valley and i was looking for #Hitchhik, at morning everything was quite, sun was just emerging
‎I walked almost three km and i got one pickup, they were a family and they were going to Church, they drop me at Church
‎When they drop me they again i started walk toward Bomdila and i walked almost 3 km then i saw one biker, i asked for lift upto Bomdila and he said ok, he drop me little before Bomdila
‎ठंड के मौसम मे सर पे धुप हो तो उसका क्या कहना, वहा पास मे एक घर था, और वो लोकल फ्रूट बेचते थे, एक होटल भी था पर सुबह ज्यादा होने से वो खुला नही था
अब मै इंतजार कर रहा था किसी गाङी का, मैने लिफ्ट मांगना शुरू किया थोडी देर मै मैने एक आर्मी की गाङी देखा, वो एक officer की गाङी थी, मैने उनसे कहा थोङा आगे छोङने के लिए और उन्होने कहा ठीक है और मै उनकी कार मै बैठ गया
‎और मै Bomdila कि तरफ जाने लगा
   मै Bomdila से थोङा पहले था और सुबह का मौसम था, सर पे धुप थी और ठंड के मौसम मे धुप किसे अच्छी नही लगती, मै यहा तक एक बाईक पर लिफ्ट ले कर आया था और आज शाम तक मै Bhalukopng जाना चाहता था
आज मुझे खाना खाये हुए पुरे एक दिन हो गया था, कल मैने Tawang मठ मे नमक मख्खन वाली चाय पीया और उसी से अब तक काम चल रहा था
मैने पास मे एक घर देखा, उसके सामने कुछ फल एक मेज पर रखे हुए थे, देख कर मुझे लग गया की वह बेचने के लिए है लेकिन बेचने के लिए वहा कोई नही था, घर के अन्दर एक रेस्तरा भी था और उधर से एक बहुत ही खुबसुरत बौध संगीत बज रहा था मै रेस्तरा कि तरफ बढा और रेस्तरा के अन्दर झाक कर देखा पर वहा भी कोई नही था, मुझे भूख जोरो से लगी थी और मै कुछ खाना चाहता था, वो बौध संगीत अभी भी बज रहा था और मुझे बहुत अच्छा लग रहा था
‎ मै उस रेस्तरा से बाहर आया और गाङी का इंतजार करने लगा मुझे इंतजार था किसी मुसाफिर का, ताकि मै सस्ते मे जा सकू, मैने जाते हुए कई लोगो को हाथ दिया पर वो नही रूके, थोङी देर बाद मेने एक आर्मी की gipssy गाङी आते हुए देखा, मैने पहले थोङा सोचा इसे रुकाउ या नही फिर सोचा रुकाता हू और मेने हाथ दिया और उस गाङी ने पास आकर रोक दिया, वो एक ड्राईवर थे जो उस गाङी को चलाते थे, उनके सिवा गाङी मे कोई नही था, मैने उनसे कहा क्या आप मुझे थोङा आगे छोङ देंगे और उन्होने कहा 'ठीक है'
‎ मैने अपना बैग पीछे की सीट पर रखा और आगे बैठ गया और हम Bomdila की तरफ चल दिये, उन्होने मुझसे मेरे बारे मे पुछा तो मैने उन्हे बताया कि मै एक Traveler हू, फिर पूछा कि आप कहा से है तो मैने बताया कि उ०प्र० से हू, तो उन्होने बताया कि मै उत्तराखंड से हू, ‎और हम यू ही बात करते हुए चलते गये जब हम Bomdila से थोङा आगे और #Rupa_valley से थोङा पहले तक पहुच गये तो उन्होने मुझसे पुछा कि आप कहा तक जाऐगे और मैने कहा की मुझे Bhalukpong तक जाना है तो उन्होने मुझे बताया कि मै Tezpur जा रह हू जो Bhalukpong से थोङा आगे है तब मैने उनसे कहा की असल मे मुझे भी तेजपुर जाना है पर मै भालूकपौगं से ट्रेन लूगा ताकि मै रेलवे की डोरमेटरी ले सकु, तो उन्होने कहा ठीक है और हम चलते रहे
‎ थोङी देर बाद हम एक जगह पहुचे जहा रास्ता काटा जा रहा जिस्से वहा गाङीयो कि लाईन लग गयी थी, हमने वहा लगभग 1 घंटे इंतजार किया फिर रास्ता खोला गया और हम आगे बढे
‎ उन्होने मुझसे कहा कि उन्होने सुबह खाना नही खाया है तो कही रूक कर खाना खाया जायेगा और मुझे भूख तो लगी ही थी, पर हमने Bhalukpong खाना खाने का प्लान बनाया क्योकी मै वहा 1 बजे से पहले पहुचना चाहता था ताकी मै Dekargaon के लिए ट्रेन पकङ सकू और हम वहा लगभग 1:40 पे पहुचे, मेरा internet काम नही कर था जिससे मै ट्रेन का सही टाईम नही देख पा रहा था, और मुझे याद था कि ट्रेन यहा से 1 बजे ही जाती है क्योकी Tawang जाते समय मैने स्टेशन पर उस लङकी से पुछा था जो मुझे स्टेशन पर मिली थी और जिसने पाॅवर आन किया था ताकी मै कैमरे की बैटरी चार्ज कर सकु, उसने मुझे यही बताया था कि यहा से ट्रेन 1 बजे जाती है जबकी ट्रेन Bhalukpong स्टेशन से 1:50 बजे जाती है, तो जब थोङा सा इन्टरनेट आया तो मैने अगले स्टेशन का चेक किया और तब मुझे पता चला कि वो ट्रेन 1:50 पे है, अब मै भालुकपोंग से थोङा आगे था तो मैने उनसे कहा की हम Balipara खाना खायेगे जो अगला स्टेशन था और हम बालिपारा कि तरफ बढ चले जो कि भालूकपोंग से 30 कि० मी० है, वहा से बालिपारा तक रोङ बहुत अच्छा था और हम 2:20 पे पहुच गये, फिर हमने आस-पास रेस्तरा ढुढा पर कोई दिखा नही तो हमने एक दूसरे को अलविदा कहा और हम आगे बढे, वो तेजपुर कि तरफ और मै बालिपारा स्टेशन कि तरफ, मै थोङा आगे बढा था कि मैने एक ढाबा देखा जो रेलवे लाईन से महज 100 मीटर था, यहा से रेलवे लाईन बिल्कुल साफ दिखता था और मेरे पास लगभग 20 मिनट था, अब अगर ट्रेन जाएगी तो वो यही से होकर जाएगी और अब मै निश्चिंत होकर रेस्तरा के अन्दर गया और खाने का पता किया, वहा 40₹/थाली थी, मैने तुरन्त आर्डर दिया और खाना खाना शुरू किया, मै थोङा जल्दी-जल्दी खा रहा था क्योकि मेरे पास वक्त कम था और ट्रेन कभी भी आ सकती थी, खाना वाकई मे अच्छा था
‎ तो मैने अपना खाना खत्म किया और स्टेशन कि तरफ बढा, स्टेशन वहा से तकरीबन 300 मीटर था, मै थोङा आगे बढा तो मुझे स्टेशन बिल्कुल साफ दिख लगा, और मै दंग रह गया वहा वो खङी थी जिस्से मुझे जाना था, मै तेजी से स्टेशन कि तरफ भागा, मुझे समझ नही आ रहा था कि ये ट्रेन कब आ गयी और मै अभी भी भाग रहा था मैरे पीठ पे मेरा भारी बैग था और मैने खाना भी खा रखा था मै अब महज ट्रेन से 100 मीटर था कि ट्रेन चलने लगी, मै थोङा और तेज भागा पर मुझे जल्दी ही लग गया कि मै नही पकङ सकता और मैने पीछे खङे गार्ड को देखा तो मैने जोर से आवाज लगााया और गार्ड ने मुझे देखा और ट्रेन को रोक दिया, ये एक छोटा स्टेशन था जहा सिर्फ पैसेन्जर ट्रेन रुकती थी, ट्रेन लगभग रूक गयी और मै भाग कर गया ट्रेन मे चढ गया, मै गार्ड से आगे वाली बोगी मे बैठ गया, मेरी बोगी मे कोई नही था पर आगे की बोगीयो मे कुछ लोग थे, मेरे पास टिकट नही था और Dekargaon स्टेशन जो आसाम मे है पर डोरमेटरी लेने के लिए मुझे टिकट चाहिए इसलिए मै अगले स्टेशन Rangapara North का इंतजार करने लगा रास्ता बहुत ही खुबसुरत था दोनो तरफ चाय के बागान और जहा तक देखो सिर्फ हरियाली थी, थोङी देर ट्रेन स्टेशन पर पहुची, वहा ट्रेन का स्टाप तकरीबन 10 मिनट का था और मै तुरन्त टिकट काउन्टर पर गया और एक डेकारगाँव स्टेशन का टिकट ले आया और ट्रेन मे बैठ गया अब मै निश्चिंत था, जैसे मै अपने घर आ गया और शायद ये डेकारगाँव स्टेशन का डोरमेटरी मेरा कुछ दिने से घर हो गया था

Day5

At morning i decied to visit famouse Tawang monestry so i walked from my hotel and through market i went to Monestry
‎ I have seen on internet Tawang and i thought Tawang is a yellow roof village until i vist Tawang.
‎ But now there was no confussion, only monestry have yellow roof, i went inside and i saw one kids LAMA और मैने कहा "कैसे है छोटे लाॅमा और उसने बङी प्यारी सी आवाज मे कहा "अच्छा हू"।
‎ Initially i thought that he can't speak Hindi but he was fluent in Hindi and he surpriese me! And not only this boy but People of Arunachal can speak good Hindi as campare to any North East state
‎ I went inside Monestry with kid lama and then i saw School of Lama and place of worship(Temple), I went inside temple and it was time for Worship (puja), i saw worship proccess with bodh music
‎ Later i went to Lama mess and test traditional tea of Arunachal 'it was salty with butter' then mess manager (also LAMA) show me their kitchen and storage where food was stored
‎ Now i decied to return......
‎  I was at famous Tawang Monestry and time was almost mid noon and tempreture was normal because in night temprature goes in -ve, after visit Tawang Monestry i return to hotel and pack my backpack and before 12pm i check out the hotel and return back and i was looking for a Hitchhike then i got a bike and he drop me out of Tawang town and now again i was looking for hitchhike then i took one sumo for Dirang valley and it was my first paid vehhicle
‎And then i understand one more advantage of Hitchhike is #comfortable journey मेरी दो बार गरदन टूटने से बचा, खराब रास्तो पर वो तुफान की तरह चला रहा था, थोङी दूर चलने के बाद #Sella_Pass आया, क्योकि अब शाम होने लगी थी तो बर्फ गिरने लगी थी, हम एक रेस्तरा पर रूके sella pass से थोङा पहले,मैने रेस्तरा कि छत पर बर्फ गिरते देखा,ये सब मेरे लिए पहली बार था, छत ज्यादा उची नही थी तो मै छत के पास गया और उंगलियो से बर्फ गिराने लगा, थोङी देर बाद सुमो वाले ने हार्न बजाया और हम सब जा कर अन्दर बैठ गये, अब सूर्य लगभग डूबने वाला और #सेला_पास से थोङा और आगे जाने के बाद पुरा अंन्धेरा हो गया और हमारी गाङी चलती गयी
‎जब मै Dirang पहुचा तो वहा market अभी खुला था, पर मै Bhalukpong तक जाना चाहता था लेकिन वहा कोई गाङी नही थी आगे जाने के लिए तो मेने वहा एक Hotel लिया, और सो गया ।

Day4

I leave Rupa Valley at morning and aim for Tawang and it was almost 200km from there, so when i leave rupa valley i got lift on a bike and he drop me on that bridge where i meet Army man previous day and last day he told me "when you will come next day i will bring brekfast for you" so he took me to his check post ( 50m) and there were i ate Puri-subzi then i hit the road form Bomdila and i just walked 100m and i got a car for Bomdila, he was a local guy so he explaned me everything about that place
When we reached Bomdila then there were prepration for tribal festival, these guys take to inside and show me all prepration and explaned me all about, at other side i saw bollybol comptition and then i got tretment like #guest
After all i leave and i was looking for lift so i walked and went outside bomdila but i didn't get till hours and then one bike gave me lift but his bike was not capable for two person so i left his bike and start watching all the view after 10 mnt i saw a car and asked for lift and he said ok
‎In car one man and woman was on front and one girl behind, i got sit at behind, They were going to #Dirang at a Monestry and for #HotSpring
‎So now i was at Dirang Valley
  Now i was at #Dirang_Valley and time was almost noon and i was feeling relax but still Tawang was far so i walked again through Dirang Valley and i saw a construction pick-up and i stand behind of it, he took me to a Army check post almost 10km from there and he went offroad,
I went to check post ask for some water actually i was thrusty and my water bottel was empty so He took me to inside and gave me water, first i drink and then fill my bottel then i walked toward Tawang
I was about to 200 m from post then i look behind and i saw one Army vehicle, It was a officer vehicle but i show hand for lift and he stopped his vehicle then i told him can you drop me little forward and he said 'ok'
‎ "Army always help me while my journey"
‎ and he drop me at a resturant, till now my camera battery was about to die so i put it on charge and me and restaurant owner started talk about my state (U.P), politics and on ssome positive points
#Twist‎ Then one man enter in restaurant and he was about to change my plane but still i didn't know it!
When i was near #Dirang_valley in a reastaurant then one person enter and still i didn't know this person will change my plane!
He ate something and then sat in his car and i went to car and said that can you drop me little more and he said where you want to go then i said TAWANG then he said "also i am going to Tawang"
‎ Then i sat in his car and moved toward Tawang, Tawang was almost 100km from there and now i was feeling like i am at my destination
‎ While journey i saw beautiful cloudy mountain, many biker were going in cold weather and #Sela_Pass it was covered by snow all arounnd and i saw snow fall on our car wind shield
‎while journey i realize कि अगर मै किसी bike या किसी और गाङी पे गया होता तो ठंड से मर जाता, मैने रास्ते मे bikers को कांपते हुए देखा, हमारे कार कि AC फुल थी, जब हम एक आर्मी कैन्टीन पर बाहर निकले तो मै ठंड से काप गया था
‎ मै जब Tawang पहुचा तो अंन्धेरा हो गया था, और town वहा से 10km था, मैने वहा आर्मी वालो सेेे बोला और उन्होने मुझे एक गाङी मेे बैठा दिया
‎ये लोकल लोग थे, मैने इनसे कहा किसी budget होटल के लिए और मुझे वो एक होटल पे ले गए जो सस्ता भी था और अच्छा भी।
‎ रात मे temp -1℃ था, पर मै अच्छे से सोया

Day3

 #TowardNE #Traveler #Bhalukpong #HitchHike #Arunachal #Rupa #Bomdila #Tawang #AJourney

     When i wokeup at Rangapara station then i heard allouncment about a train for Balipara (where i wanted to go), Quick i fold my sleeping bag and took that train, it was almost 10 km and in Balipara i reached at a intersection, where there is four way, Itanagar, Tejpur, Rangapara, Bhalukpong
I wanted to go Bhalukpong so i moved toward Bhalukpong road and i was looking for HitchHike then i saw a truck and he gave me lift upto Bhalukpong
  Today everything was better than my expectation, Bhalukpong is base of all mountains upto Tawang‎I went to Bhalukpong Station and charge my camera and mobile phone, when i reached at station then there was no one and i saw a girl was cleaning station, she had almost cleaned station
‎I told her can i charge my phone inside because on station plugs there is no power and she said wait "i am going to start" and then i charge there my phone and camera
‎After all i took a deep breath in fresh air and moved toward highway for Tawang, till now i was in Assam and now time to cross state boundry for Arunachal and time was 9am!
  When i moved toward road from Bhalukpong station then i didn't know i will get a HitchHike very quick
When i reached then i ask to three-four vehichle but they denied then i saw one pickup and i asked to him and he said ok!
‎So i took that vehichel and moved toward Bhalukpong, initally road was so beautiful, one side of road was beautiful Kameng river and other side beautiful mountain
‎While journey i saw Bamboo food products made by local people, there were lots of things just made by bamboo
‎I moved more and i saw lots of Army camp and base and lot of things arranged by Millitry
‎He drop me at a place called Rupa, near a bridge, i saw a Army persone so i went there and talk to him about area, where to stay and many more!
‎ then after all information i went to Rupa valley and stay there that night

Day2 

#Day2 #TowardNE #Assam #DekargaonJN #Arunachal #ILP

I wake up at morning and went to Tezpur to make inner line permit because we need temprery permit to go Arunachal
So i reached at Parvatia Nagar at Arunachal Dc office, there were a lady and she gave me a form and i fill up everything, It is very simple not too much complicated, and it charge only 15 INR for one place, after all she told you will come at 4 pm
‎ So i went inside Tezpur city and after one hour i went a park and near about at 2:30 pm again i went to Office and my Permit was ready then i took it and return to Dekargaon Railway Station and pack my backpack for next destination because there was a last train at 4:40pm for RangaPara North Station
‎I went there because i wanted to go Balipara but there was no train so i slept at RangaPara station that Night

Day1

    I took a train for #Dekargaon Station
‎where i took this train than there had been night and on that platform where my train was about to came, A another train came for #Bongaigaon station and i was tension free because last station of my train was same where i wanted to go, so put my bag on my head and get sleep without any tension and at night when ytain reached at their last station then worker of train told me "It is last station you can't stay in train than i went to platform no 1 and get sleep
‎ When i wokeUp at morning then i was planing, today i will go Tezpur and till evening i will make passes and at evening or may be next day will move for Arunachal
‎ So open my map and i was searching ILP office location then it was showing too far then i saw my current location and it was somewhere far from my destination
‎ Now you thing what will be your reaction when you will be awake at a moring and you will find you are somewhere else where you slept last night
‎ I felt something like this
Then i went outside of station and i saw a crowed then i went there and i saw a food shop and there were many people were eating accorning to their no so also i stand beside on a big banch and there were a good system you don't have to ask they will give you so they give me one Bhatuta but i ask another one and it was really good test 2 for 20₹
‎ Then i return to platform and took train for Rangia Station and i reached at 11:45 and i saw a train was on right to my train for #Dekargaon"Station so i took that train and reached at Dekargaon Station then instantly i went to station master and ask for Dormitory and he sent me at booking room then i took dormitory for 1 day and went to room
‎ I was alone in the dormitory and i was not only one at dormitory but also on station and when i first time came on that station 2 year ago than also i was alone at station
‎ Then i went to room put my back pack and went outside to eat something but outside only one shop opened and then i ate Amlate and return to room and get sleep

1 comment:

  1. इतना बढ़िया चैनल बनाकर कहां खो गये ।

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